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"लिखा है... मुझको भी लिखना पड़ा है / अख़्तर नाज़्मी" के अवतरणों में अंतर

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लिख है..... मुझको भी लिखना पड़ा है
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जहाँ से हाशिया छोड़ा गया है
 
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तो फिर उड़ने को पर क्यूँ तौलता है
 
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मेरा सामन सब बिखरा हुआ है
 
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मैं जा बैठूँ किसी बरगद के नीचे
 
मैं जा बैठूँ किसी बरगद के नीचे
 
सुकूँ का बस यही एक रास्ता है   
 
सुकूँ का बस यही एक रास्ता है   
  
क़यामत देखीये मेरी नज़र से  
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क़यामत देखिए मेरी नज़र से  
 
सवा नेज़े पे सूरज आ गया है
 
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अभी तो घर नहीं छोड़ा है मैंने
 
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ये किसका नाम तख्ती पर लिखा है
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बहुत  रोका है "नज्मी" पत्थरों ने  
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बहुत  रोका है "नाज़्मी" पत्थरों ने
 
मगर पानी को रास्ता मिल गया है
 
मगर पानी को रास्ता मिल गया है
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23:30, 31 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

लिखा है..... मुझको भी लिखना पड़ा है
जहाँ से हाशिया छोड़ा गया है

अगर मानूस है तुम से परिंदा
तो फिर उड़ने को पर क्यूँ तौलता है

कहीं कुछ है... कहीं कुछ है... कहीं कुछ
मेरा सामन सब बिखरा हुआ है

मैं जा बैठूँ किसी बरगद के नीचे
सुकूँ का बस यही एक रास्ता है

क़यामत देखिए मेरी नज़र से
सवा नेज़े पे सूरज आ गया है

शजर जाने कहाँ जाकर लगेगा
जिसे दरिया बहा कर ले गया है

अभी तो घर नहीं छोड़ा है मैंने
ये किसका नाम तख़्ती पर लिखा है

बहुत रोका है "नाज़्मी" पत्थरों ने
मगर पानी को रास्ता मिल गया है