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|संग्रह=सवा नेज़े पे सूरज / अख़्तर नाज़्मी
}}
[[Category:ग़ज़ल]]लिख <poem>लिखा है..... मुझको भी लिखना पड़ा है
जहाँ से हाशिया छोड़ा गया है
तो फिर उड़ने को पर क्यूँ तौलता है
कहीं कुछ है…है... कहीं कुछ है…है... कहीं कुछ
मेरा सामन सब बिखरा हुआ है
 
मैं जा बैठूँ किसी बरगद के नीचे
सुकूँ का बस यही एक रास्ता है
क़यामत देखीये देखिए मेरी नज़र से
सवा नेज़े पे सूरज आ गया है
अभी तो घर नहीं छोड़ा है मैंने
ये किसका नाम तख्ती तख़्ती पर लिखा है
बहुत रोका है "नज्मीनाज़्मी" पत्थरों ने
मगर पानी को रास्ता मिल गया है
</poem>
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