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|रचनाकार=अख़्तर नाज़्मी
|संग्रह=सवा नेज़े पे सूरज / अख़्तर नाज़्मी
}}[[Category:ग़ज़ल]]<poem>लिखा है..... मुझको भी लिखना पड़ा हैजहाँ से हाशिया छोड़ा गया है
लिख अगर मानूस है..... मुझको भी लिखना पड़ा है<br>तुम से परिंदाजहाँ से हाशिया छोड़ा गया तो फिर उड़ने को पर क्यूँ तौलता है<br><br>
अगर मानूस कहीं कुछ है तुम से परिंदा<br>... कहीं कुछ है... कहीं कुछतो फिर उड़ने को पर क्यूँ तौलता मेरा सामन सब बिखरा हुआ है<br><br>
कहीं कुछ है... कहीं कुछ है... कहीं कुछ<br>मैं जा बैठूँ किसी बरगद के नीचेमेरा सामन सब बिखरा हुआ सुकूँ का बस यही एक रास्ता है<br><br>
मैं जा बैठूँ किसी बरगद के नीचे<br>क़यामत देखिए मेरी नज़र से सुकूँ का बस यही एक रास्ता सवा नेज़े पे सूरज आ गया है <br><br>
क़यामत देखिए मेरी नज़र से <br>शजर जाने कहाँ जाकर लगेगासवा नेज़े पे सूरज आ जिसे दरिया बहा कर ले गया है<br><br>
शजर जाने कहाँ जाकर लगेगा<br>अभी तो घर नहीं छोड़ा है मैंनेजिसे दरिया बहा कर ले गया ये किसका नाम तख़्ती पर लिखा है <br><br>
अभी तो घर नहीं छोड़ा है मैंने<br>ये किसका नाम तख़्ती पर लिखा है<br><br> बहुत रोका है "नाज़्मी" पत्थरों ने <br>
मगर पानी को रास्ता मिल गया है
</poem>
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