भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ललद्यद के नाम-3 / अग्निशेखर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अग्निशेखर |संग्रह=मुझसे छीन ली गई मेरी नदी / अग्...)
 
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=मुझसे छीन ली गई मेरी नदी / अग्निशेखर
 
|संग्रह=मुझसे छीन ली गई मेरी नदी / अग्निशेखर
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita}}
 
<Poem>
 
<Poem>
 
हम पर भी कसी गई फब्तियाँ
 
हम पर भी कसी गई फब्तियाँ
पंक्ति 20: पंक्ति 20:
 
तुम्हारी बेटियाँ
 
तुम्हारी बेटियाँ
 
झुलस रही हैं इस अलाव में
 
झुलस रही हैं इस अलाव में
 
 
 
</poem>
 
</poem>

23:47, 31 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

हम पर भी कसी गई फब्तियाँ
समय की टेढ़ी आँख ने
चुना हमें ही

अपनी ही सड़कों पर
हमारे पीछे भी लगा वही आदमी
जिससे बचने के लिए
तुमने मारी थी छलांग तन्दूर में

और तुम तो निकलीं थीं
स्वर्ग के वस्त्र पहनकर
हम-
तुम्हारी बेटियाँ
झुलस रही हैं इस अलाव में