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"कैवल्य / अजन्ता देव" के अवतरणों में अंतर
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+ | मैंने तो गढ़ा है इसे | ||
+ | मैं जानती हूँ इसका मामूली अर्थ | ||
+ | मैं हर रात यह प्रदान करती हूँ । | ||
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11:22, 1 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
झुलनिया के एक आघात से
पहुँचाऊंगी पाताल
सुलाऊंगी शेषनाग के फन पर
डोलेगी धरा
डोलेगी तुम्हारी देह
मेरी लय पर
कभी पैंजनिया कभी पायलिया झंकारेगी
परन्तु कोई नहीं आएगा
इस एकान्त में
जिसे रचा है मैंने
अंधकार के आलोक से
रुको नहीं चले चलो
भय नहीं केवल लय
मैं नहीं तुम कहोगे कैवल्य
मैंने तो गढ़ा है इसे
मैं जानती हूँ इसका मामूली अर्थ
मैं हर रात यह प्रदान करती हूँ ।