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"शहर के बीच / अजित कुमार" के अवतरणों में अंतर

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खिलखिलाता नज़र आया।
 
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11:47, 1 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

शहर के बीचोबीच
जो एक बड़ा-सा फ़व्वारा है
जिसके इर्द-गिर्द
खूबसूरत बाग़ीचा है
वहाँ-वहाँ बिछी हैं
आरामदेह बेंचें

आराम भी करो
नज़ारा भी देखो-
संगीत की लय पर
आर्केस्ट्रा के संग
उछलती-कूदती रंगीन रोशनियाँ
शीतल जल की फुहारें

इंद्रजाल में
सबके सब मुग्ध-मोहित से फँसे थे

तभी सरपत के वन में
पिंडली तक लथ-पथ कीचड़ से
कास के फूल चुनता
एक नन्हा शैतान
खिलखिलाता नज़र आया।