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"तुम्हारी खोज में / अजित कुमार" के अवतरणों में अंतर

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तमाम लोगों के बीच
 
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मैं तुम्हें खोजता हू।
 
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जाते हुओं में और
 
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आते हुओं में,
 
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हँसते, चुप बैठे, रोते,
 
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गाते हुओं में
 
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केवल तुम्हें खोजता हूँ ।  
 
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किन्तु कैसी विवशता है कि
 
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सब में
 
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मैंने
 
मैंने
 
 
केवल अपने को पाया है ।  
 
केवल अपने को पाया है ।  
 
 
भीड़ों में धँसकर
 
भीड़ों में धँसकर
 
 
या बाँहों में कसकर,
 
या बाँहों में कसकर,
 
 
उठकर या गिरकर,
 
उठकर या गिरकर,
 
 
चलते-चलते रुककर
 
चलते-चलते रुककर
 
 
लोग …
 
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उनकी विवशता थी कि
 
उनकी विवशता थी कि
 
 
मेरी ही तरह
 
मेरी ही तरह
 
 
वे भी तुम्हें खोजते थे ।  
 
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अरे । उन सब में
 
अरे । उन सब में
 
 
मैने
 
मैने
 
 
तुम्हें नहीं,
 
तुम्हें नहीं,
 
 
बार-बार अपने को पाया है ।
 
बार-बार अपने को पाया है ।
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11:54, 1 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

तमाम लोगों के बीच
मैं तुम्हें खोजता हू।
जाते हुओं में और
आते हुओं में,
हँसते, चुप बैठे, रोते,
गाते हुओं में
केवल तुम्हें खोजता हूँ ।
किन्तु कैसी विवशता है कि
सब में
मैंने
केवल अपने को पाया है ।
भीड़ों में धँसकर
या बाँहों में कसकर,
उठकर या गिरकर,
चलते-चलते रुककर
लोग …
उनकी विवशता थी कि
मेरी ही तरह
वे भी तुम्हें खोजते थे ।
अरे । उन सब में
मैने
तुम्हें नहीं,
बार-बार अपने को पाया है ।