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अब दिन भारी हुए । | अब दिन भारी हुए । | ||
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प्यास के मारे | प्यास के मारे | ||
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पशु बेचारे | पशु बेचारे | ||
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दर-दर भटकेंगे, अटकेंगे तृण-तृण पर | दर-दर भटकेंगे, अटकेंगे तृण-तृण पर | ||
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माथा-सा पटकेंगे | माथा-सा पटकेंगे | ||
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जब सूख चलेंगे | जब सूख चलेंगे | ||
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ताल-तलैये, कुएँ । | ताल-तलैये, कुएँ । | ||
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वृक्षों ने जो | वृक्षों ने जो | ||
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थे श्रंगार किये दो दिन पहले | थे श्रंगार किये दो दिन पहले | ||
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वो | वो | ||
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बिखरेंगे प्रत्येक दिशा में- | बिखरेंगे प्रत्येक दिशा में- | ||
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लेंगी लपटएं जब | लेंगी लपटएं जब | ||
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निष्ठुर | निष्ठुर | ||
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-निर्दयी हवायें और आँधियां, लुएं। | -निर्दयी हवायें और आँधियां, लुएं। | ||
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इन सबसे निस्संग- | इन सबसे निस्संग- | ||
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मदिर, अम्लान, मुक्त, मधुरंग- | मदिर, अम्लान, मुक्त, मधुरंग- | ||
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कहाँ रह पायेंगे मेरे संवेदन। | कहाँ रह पायेंगे मेरे संवेदन। | ||
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अलसायेगा यह मेरा मन । | अलसायेगा यह मेरा मन । | ||
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गायेगा, पर कुम्हलाये-से जान पड़ेंगे क्या | गायेगा, पर कुम्हलाये-से जान पड़ेंगे क्या | ||
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वे सारे भाव ।- कि जो लगते-से थे- हैं युग-युग से अनचुए । | वे सारे भाव ।- कि जो लगते-से थे- हैं युग-युग से अनचुए । | ||
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अब दिन भारी हुए । | अब दिन भारी हुए । | ||
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11:57, 1 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
अब दिन भारी हुए ।
प्यास के मारे
पशु बेचारे
दर-दर भटकेंगे, अटकेंगे तृण-तृण पर
माथा-सा पटकेंगे
जब सूख चलेंगे
ताल-तलैये, कुएँ ।
वृक्षों ने जो
थे श्रंगार किये दो दिन पहले
वो
बिखरेंगे प्रत्येक दिशा में-
लेंगी लपटएं जब
निष्ठुर
-निर्दयी हवायें और आँधियां, लुएं।
इन सबसे निस्संग-
मदिर, अम्लान, मुक्त, मधुरंग-
कहाँ रह पायेंगे मेरे संवेदन।
अलसायेगा यह मेरा मन ।
गायेगा, पर कुम्हलाये-से जान पड़ेंगे क्या
वे सारे भाव ।- कि जो लगते-से थे- हैं युग-युग से अनचुए ।
अब दिन भारी हुए ।