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जिसका भी जी चाहे कह ले  
 
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-ऐसे नहीं कभी थे पहले:
 
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:::खेत सुनहले।
 
:::खेत सुनहले।
 
:::खेत सुनहले...
 
:::खेत सुनहले...
 
  
 
अंगराग बन गई कि जो थी अब तक धूल,
 
अंगराग बन गई कि जो थी अब तक धूल,
 
 
नाच रहे जैसे पहने रंगीन दुकूल:
 
नाच रहे जैसे पहने रंगीन दुकूल:
 
 
:::::नीले फूल।
 
:::::नीले फूल।
 
 
::::नीले फूल...
 
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इतनी ताज़ी जैसे अभी उगी कल-परसों,
 
इतनी ताज़ी जैसे अभी उगी कल-परसों,
 
 
मन में बसी रहेगी जाने कितने बरसों:
 
मन में बसी रहेगी जाने कितने बरसों:
 
 
:::::::पीली सरसों।
 
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::::::पीली सरसों...
 
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मेरी और तुम्हारी क्या, बौराये साधू और महन्त,
 
मेरी और तुम्हारी क्या, बौराये साधू और महन्त,
 
 
होठों पर उभरे सेनापति और प्रसाद, निराला, पन्त:
 
होठों पर उभरे सेनापति और प्रसाद, निराला, पन्त:
 
 
::::स्वागत हे ॠतुराज वसन्त।
 
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:::स्वागत हे ॠतुराज वसन्त...
 
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19:38, 1 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

जिसका भी जी चाहे कह ले
-ऐसे नहीं कभी थे पहले:
खेत सुनहले।
खेत सुनहले...

अंगराग बन गई कि जो थी अब तक धूल,
नाच रहे जैसे पहने रंगीन दुकूल:
नीले फूल।
नीले फूल...

इतनी ताज़ी जैसे अभी उगी कल-परसों,
मन में बसी रहेगी जाने कितने बरसों:
पीली सरसों।
पीली सरसों...

मेरी और तुम्हारी क्या, बौराये साधू और महन्त,
होठों पर उभरे सेनापति और प्रसाद, निराला, पन्त:
स्वागत हे ॠतुराज वसन्त।
स्वागत हे ॠतुराज वसन्त...