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"कवियों का विद्रोह / अजित कुमार" के अवतरणों में अंतर

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'चांदनी चंदन सदृश' :
 
'चांदनी चंदन सदृश' :
 
 
:  हम क्यों लिखें ?
 
:  हम क्यों लिखें ?
 
 
मुख हमें कमलों-सरीखे
 
मुख हमें कमलों-सरीखे
 
 
:  क्यों दिखें ?
 
:  क्यों दिखें ?
 
 
:  हम लिखेंगे :
 
:  हम लिखेंगे :
 
 
चांदनी उस रूपए-सी है
 
चांदनी उस रूपए-सी है
 
 
कि जिसमें
 
कि जिसमें
 
 
चमक है, पर खनक ग़ायब है ।
 
चमक है, पर खनक ग़ायब है ।
 
 
    
 
    
 
हम कहेंगे ज़ोर से :
 
हम कहेंगे ज़ोर से :
 
 
मुँह घर-अजायब है...
 
मुँह घर-अजायब है...
 
 
(जहाँ पर बेतुके, अनमोल, ज़िन्दा और मुर्दा भाव रहते हैं ।)
 
(जहाँ पर बेतुके, अनमोल, ज़िन्दा और मुर्दा भाव रहते हैं ।)
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19:52, 1 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

'चांदनी चंदन सदृश' :
हम क्यों लिखें ?
मुख हमें कमलों-सरीखे
क्यों दिखें ?
हम लिखेंगे :
चांदनी उस रूपए-सी है
कि जिसमें
चमक है, पर खनक ग़ायब है ।
  
हम कहेंगे ज़ोर से :
मुँह घर-अजायब है...
(जहाँ पर बेतुके, अनमोल, ज़िन्दा और मुर्दा भाव रहते हैं ।)