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|संग्रह=अकेले कंठ की पुकार / अजित कुमार
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'चांदनी चंदन सदृश' :
 
: हम क्यों लिखें ?
 
मुख हमें कमलों-सरीखे
 
: क्यों दिखें ?
 
: हम लिखेंगे :
 
चांदनी उस रूपए-सी है
 
कि जिसमें
 
चमक है, पर खनक ग़ायब है ।
 
हम कहेंगे ज़ोर से :
 
मुँह घर-अजायब है...
 
(जहाँ पर बेतुके, अनमोल, ज़िन्दा और मुर्दा भाव रहते हैं ।)
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