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"आओ, हम फिर से जियें / अजित कुमार" के अवतरणों में अंतर
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20:58, 1 नवम्बर 2009 का अवतरण
आओ, हम फिर से जियें ।
बहता-बहता मेघखंड जो पहुँच गया है वहाँ क्षितिज तक लौटा लायें उसे, कहें : ‘ओ, फिर से बहो । मन, मन्थर, मृदु गति से … शोभावाही मेघ, रसीले मेघ, दूत । जो कथा कही थी, फिर से कहो ।‘
और … अपलक, अविचल हम उसे निरखते रहें, पियें ।
आओ, हम फिर से जियें । </poem>