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"चांदनी जी लो / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर

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शरद चांदनी बरसी
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अँजुरी भर कर पी लो
  
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ऊँघ रहे हैं तारे
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ओ प्रिय कुमुद ताकते
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तुम भी जी लो
  
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सींच रही है ओस
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ओ प्रिय कुमुद ताकते<br>
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खड़ी हैं सीठी<br>
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हिय उमगा
ठिठक गये हैं मानों<br>
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अनकहनी अलसानी
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जगी लालसा मीठी,
आने-जाने<br><br>
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खड़े रहो ढिंग
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गहो हाथ
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पाहुन मन-भाने,
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ओ प्रिय रहो साथ
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भर-भर कर अँजुरी पी लो
  
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अनकहनी अलसानी<br>
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मेरा अन्त:स्पन्दन
जगी लालसा मीठी,<br>
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तुम भी क्षण-क्षण जी लो !<br><br>
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23:39, 1 नवम्बर 2009 का अवतरण

शरद चांदनी बरसी
अँजुरी भर कर पी लो

ऊँघ रहे हैं तारे
सिहरी सरसी
ओ प्रिय कुमुद ताकते
अनझिप क्षण में
तुम भी जी लो ।

सींच रही है ओस
हमारे गाने
घने कुहासे में
झिपते
चेहरे पहचाने

खम्भों पर बत्तियाँ
खड़ी हैं सीठी
ठिठक गये हैं मानों
पल-छिन
आने-जाने

उठी ललक
हिय उमगा
अनकहनी अलसानी
जगी लालसा मीठी,
खड़े रहो ढिंग
गहो हाथ
पाहुन मन-भाने,
ओ प्रिय रहो साथ
भर-भर कर अँजुरी पी लो

बरसी
शरद चांदनी
मेरा अन्त:स्पन्दन
तुम भी क्षण-क्षण जी लो !