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== छन्द क्या थे ? =='''श्री गुरुदत्तजी की लिखी एक पुस्तक पढ रही हूँ --
" वेद और वैदिक काल "
( उसमेँ बहोत सी जानकारी छन्द क्या थे ? उस पर उपलब्ध है ) -
" कासीत्प्रमा प्रतिमा किँ निदानमाज्यँ किमासीत्परिधि: क आसीत्`
छन्द: किमासीत्प्रौगँ किँमुक्यँ यद्देवा देवमजयन्त विश्वे "
जब सम्पूर्ण देवता परात्मा का यजन करते हैँ लब उनका जो स्वरुप क्या था ? इस निर्धारण और निर्माण मेँ क्या पदार्थ थे? उसका घेरा कितना बडा था? वे छन्द क्या थे जो गाये जा रहे थे?
वेद इस पूर्ण जगत का ही वर्णन करते हैँ कहा है कि, जब इस जगत के दिव्य पदार्थ बने तो छन्द उच्चारण करने लगे
वे " छन्द " क्या थे?
" अग्नेगार्यत्र्यभवत्सुर्वोविष्णिहया सविता सँ बभूव
अनुष्टुभा सोम उक्थैर्महस्वान्बृहस्पतयेबृँहती वाचमावत्
विराण्मित्रावरुणयोरभिश्रीरिन्द्रस्य त्रिष्टुबिह भागो अह्ण्:
विश्वान्देवाञगत्या विवेश तेन चाक्लृप्र ऋषयो मनुष्या: "
ऋ: १० -१३० -४, ५
उस समय अग्नि के साथ गायत्री छन्द का सम्बन्ध उत्पन्न हुआ - उष्णिता से सविता का --- ओजसवी सोम से अनुष्टुप व बृहसपति से बृहती छन्द आये --
विराट छन्द , मित्र व वरुण से, दिन के समय, त्रिष्टुप इन्द्रस्य का विश्वान्` देवान से सन्पूर्ण देवताओँ का जगती छन्द व्याप्त हुआ उन छन्दोँ से ऋषि व मनुष्य ज्ञानवान हुए-- जिन्हे " यज्ञे जाते" कहा है
-- ये सृष्टि रचना के साथ उत्पन्न होने से उन्हेँ " अमैथुनीक " कहा गया है.
इस प्रकार वेद के ७ छन्द हैँ शेष उनके उपछन्द हैँ - उच्चारण करनेवाले तो ये देवता थे परन्तु वे मात्र सहयोग दे रहे थे. किसको ? परमात्मा को --
ठीक उसी तरह जैसे, हमारा मुख व गले के "स्वर ~ यन्त्र " आत्मा के कहे शब्द उच्चारते हैँ उसी तरह परमात्मा के आदेश पर देवताओँने छन्दोँ का उच्चारण किया जिसे सभी प्राणी भी तद्`पश्चात बोलने लगे व हर्षोत्पाद्`क अन्न व उर्जा को प्राप्त करने लगे.
इस वाणी को " राष्ट्री " कहा गया जो शक्ति के समान सब दिशा मेँ , छन्द - रश्मियोँ की तरह तरलता लिये फैल गई --
राष्ट्री वाणी तक्षती, एकपदी, द्विपदी, चतुष्पदी, अष्टापदी, नवपदी रूप पदोँ मेँ कट कट कर आयी -- कहाँ से ? सहस्त्राक्षरा परमे व्योमान्` से --
- लावण्या
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