"सत्य तो बहुत मिले / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
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+ | कुछ ईमानदार ख़ानाबदोश मिले । | ||
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− | कुछ | + | कुछ झड़े मिले |
− | कुछ | + | कुछ सड़े मिले |
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− | + | कुछ धुँधले कुछ सुथरे | |
+ | सब सत्य रहे | ||
+ | कहे, अनकहे । | ||
− | + | खोज़ में जब निकल ही आया | |
− | + | सत्य तो बहुत मिले | |
− | + | पर तुम | |
− | + | नभ के तुम कि गुहा-गह्वर के तुम | |
− | + | मोम के तुम, पत्थर के तुम | |
− | + | तुम किसी देवता से नहीं निकले: | |
− | + | तुम मेरे साथ मेरे ही आँसू में गले | |
− | + | मेरे ही रक्त पर पले | |
+ | अनुभव के दाह पर क्षण-क्षण उकसती | ||
+ | मेरी अशमित चिता पर | ||
+ | तुम मेरे ही साथ जले । | ||
− | + | तुम- | |
− | + | तुम्हें तो | |
− | + | भस्म हो | |
− | + | मैंने फिर अपनी भभूत में पाया | |
− | + | अंग रमाया | |
− | + | तभी तो पाया । | |
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00:06, 2 नवम्बर 2009 का अवतरण
खोज़ में जब निकल ही आया
सत्य तो बहुत मिले ।
कुछ नये कुछ पुराने मिले
कुछ अपने कुछ बिराने मिले
कुछ दिखावे कुछ बहाने मिले
कुछ अकड़ू कुछ मुँह-चुराने मिले
कुछ घुटे-मँजे सफेदपोश मिले
कुछ ईमानदार ख़ानाबदोश मिले ।
कुछ ने लुभाया
कुछ ने डराया
कुछ ने परचाया-
कुछ ने भरमाया-
सत्य तो बहुत मिले
खोज़ में जब निकल ही आया ।
कुछ पड़े मिले
कुछ खड़े मिले
कुछ झड़े मिले
कुछ सड़े मिले
कुछ निखरे कुछ बिखरे
कुछ धुँधले कुछ सुथरे
सब सत्य रहे
कहे, अनकहे ।
खोज़ में जब निकल ही आया
सत्य तो बहुत मिले
पर तुम
नभ के तुम कि गुहा-गह्वर के तुम
मोम के तुम, पत्थर के तुम
तुम किसी देवता से नहीं निकले:
तुम मेरे साथ मेरे ही आँसू में गले
मेरे ही रक्त पर पले
अनुभव के दाह पर क्षण-क्षण उकसती
मेरी अशमित चिता पर
तुम मेरे ही साथ जले ।
तुम-
तुम्हें तो
भस्म हो
मैंने फिर अपनी भभूत में पाया
अंग रमाया
तभी तो पाया ।
खोज़ में जब निकल ही आया,
सत्य तो बहुत मिले-
एक ही पाया ।