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"चाँदनी चुप-चाप / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर

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चाँदनी चुप-चाप सारी रात
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सूने आँगन में
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:::जाल रचती रही।
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मेरी रूपहीन अभिलाषा
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अधूरेपन की मद्धिम
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:::आँच पर तँचती रही।
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व्यथा मेरी अनकही
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आनन्द की सम्भावना के
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:::मनश्चित्रों से परचती रही। 
  
चाँदनी चुप-चाप सारी रात<br>
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मैं दम साधे रहा,  
सूने आँगन में<br>
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मन में अलक्षित  
:::जाल रचती रही।<br>
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:::आँधी मचती रही :  
मेरी रूपहीन अभिलाषा<br>
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प्रातः बस इतना कि मेरी बात  
अधूरेपन की मद्धिम<br>
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:::आँच पर तँचती रही।<br>
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उघड़कर वासना का  
व्यथा मेरी अनकही<br>
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आनन्द की सम्भावना के<br>
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:::मनश्चित्रों से परचती रही।<br><br>
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मैं दम साधे रहा,<br>
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मन में अलक्षित<br>
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:::आँधी मचती रही :<br>
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प्रातः बस इतना कि मेरी बात<br>
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सारी रात<br>
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उघड़कर वासना का<br>
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:::रूप लेने से बचती रही।
 
:::रूप लेने से बचती रही।
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00:27, 2 नवम्बर 2009 का अवतरण

चाँदनी चुप-चाप सारी रात
सूने आँगन में
जाल रचती रही।
मेरी रूपहीन अभिलाषा
अधूरेपन की मद्धिम
आँच पर तँचती रही।
व्यथा मेरी अनकही
आनन्द की सम्भावना के
मनश्चित्रों से परचती रही।

मैं दम साधे रहा,
मन में अलक्षित
आँधी मचती रही :
प्रातः बस इतना कि मेरी बात
सारी रात
उघड़कर वासना का
रूप लेने से बचती रही।