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"पास और दूर / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
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− | ठुकरा कर हड्डी-पसली तोड़ गये | + | जो जड़े काट, मिट्टी उपाट, |
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− | उन के पग रोष-भरे खूँदते रहे, | + | वे नहर खोद कर अनायास |
− | फिर अवहेला से रौंद गये : | + | सागर से सागर जोड़ गये |
− | उसको वे ही एक अनजाने नयी खाद दे गाड़ गये : | + | मिटा गये अस्तित्व, |
− | उसमें ही वे एक अनोखा अंकुर रोप गये। | + | किन्तु वे |
− | -जो चले गये, जो छोड़ गये, | + | जीवन मुझको सौंप गये। |
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00:39, 2 नवम्बर 2009 का अवतरण
जो पास रहे
वे ही तो सबसे दूर रहे :
प्यार से बार-बार
जिन सब ने उठ-उठ हाथ और झुक-झुक कर पैर गहे,
वे ही दयालु, वत्सल स्नेही तो
सब से क्रूर रहे।
जो चले गये
ठुकरा कर हड्डी-पसली तोड़ गये
पर जो मिट्टी
उन के पग रोष-भरे खूँदते रहे,
फिर अवहेला से रौंद गये :
उसको वे ही एक अनजाने नयी खाद दे गाड़ गये :
उसमें ही वे एक अनोखा अंकुर रोप गये।
-जो चले गये, जो छोड़ गये,
जो जड़े काट, मिट्टी उपाट,
चुन-चुन कर डाल मरोड़ गये
वे नहर खोद कर अनायास
सागर से सागर जोड़ गये
मिटा गये अस्तित्व,
किन्तु वे
जीवन मुझको सौंप गये।