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"पहचान / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
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00:40, 2 नवम्बर 2009 का अवतरण
तुम वही थीं :
किन्तु ढलती धूप का कुछ खेल था-
ढलती उमर के दाग़ उसने धो दिये थे।
भूल थी
पर
बन गयी पहचान-
मैं भी स्मरण से
नहा आया।