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|संग्रह=आँगन के पार द्वार / अज्ञेय
}}
{{KKCatKavita}}<poem>तुम वही थीं :<br>किन्तु ढलती धूप का कुछ खेल था-<br>ढलती उमर के दाग़ उसने धो दिये थे।<br>भूल थी <br> पर<br>बन गयी पहचान-<br>मैं भी स्मरण से <br> नहा आया। <br><br/poem>