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"कितनी नावों में कितनी बार (कविता) / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
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कितनी दूरियों से कितनी बार | कितनी दूरियों से कितनी बार | ||
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कितनी डगमग नावों में बैठ कर | कितनी डगमग नावों में बैठ कर | ||
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मैं तुम्हारी ओर आया हूँ | मैं तुम्हारी ओर आया हूँ | ||
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ओ मेरी छोटी-सी ज्योति! | ओ मेरी छोटी-सी ज्योति! | ||
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कभी कुहासे में तुम्हें न देखता भी | कभी कुहासे में तुम्हें न देखता भी | ||
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पर कुहासे की ही छोटी-सी रुपहली झलमल में | पर कुहासे की ही छोटी-सी रुपहली झलमल में | ||
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पहचानता हुआ तुम्हारा ही प्रभा-मंडल। | पहचानता हुआ तुम्हारा ही प्रभा-मंडल। | ||
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कितनी बार मैं, | कितनी बार मैं, | ||
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धीर, आश्वस्त, अक्लांत— | धीर, आश्वस्त, अक्लांत— | ||
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ओ मेरे अनबुझे सत्य! कितनी बार... | ओ मेरे अनबुझे सत्य! कितनी बार... | ||
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और कितनी बार कितने जगमग जहाज़ | और कितनी बार कितने जगमग जहाज़ | ||
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मुझे खींच कर ले गये हैं कितनी दूर | मुझे खींच कर ले गये हैं कितनी दूर | ||
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किन पराए देशों की बेदर्द हवाओं में | किन पराए देशों की बेदर्द हवाओं में | ||
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जहाँ नंगे अंधेरों को | जहाँ नंगे अंधेरों को | ||
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और भी उघाड़ता रहता है | और भी उघाड़ता रहता है | ||
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एक नंगा, तीखा, निर्मम प्रकाश— | एक नंगा, तीखा, निर्मम प्रकाश— | ||
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जिसमें कोई प्रभा-मंडल नहीं बनते | जिसमें कोई प्रभा-मंडल नहीं बनते | ||
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केवल चौंधियाते हैं तथ्य, तथ्य—तथ्य— | केवल चौंधियाते हैं तथ्य, तथ्य—तथ्य— | ||
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सत्य नहीं, अंतहीन सच्चाइयाँ... | सत्य नहीं, अंतहीन सच्चाइयाँ... | ||
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कितनी बार मुझे | कितनी बार मुझे | ||
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खिन्न, विकल, संत्रस्त— | खिन्न, विकल, संत्रस्त— | ||
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:कितनी बार! | :कितनी बार! | ||
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00:45, 2 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
कितनी दूरियों से कितनी बार
कितनी डगमग नावों में बैठ कर
मैं तुम्हारी ओर आया हूँ
ओ मेरी छोटी-सी ज्योति!
कभी कुहासे में तुम्हें न देखता भी
पर कुहासे की ही छोटी-सी रुपहली झलमल में
पहचानता हुआ तुम्हारा ही प्रभा-मंडल।
कितनी बार मैं,
धीर, आश्वस्त, अक्लांत—
ओ मेरे अनबुझे सत्य! कितनी बार...
और कितनी बार कितने जगमग जहाज़
मुझे खींच कर ले गये हैं कितनी दूर
किन पराए देशों की बेदर्द हवाओं में
जहाँ नंगे अंधेरों को
और भी उघाड़ता रहता है
एक नंगा, तीखा, निर्मम प्रकाश—
जिसमें कोई प्रभा-मंडल नहीं बनते
केवल चौंधियाते हैं तथ्य, तथ्य—तथ्य—
सत्य नहीं, अंतहीन सच्चाइयाँ...
कितनी बार मुझे
खिन्न, विकल, संत्रस्त—
कितनी बार!