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"घर के अंतिम बरतनों को बेचकर / जहीर कुरैशी" के अवतरणों में अंतर
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21:36, 2 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
घर के अंतिम बर्तनों को बेचकर
चल पड़े हम बंधनों को बेचकर
अब न जीवित भी रहे तो ग़म नहीं
सोचते हैं धड़कनों को बेचकर
सत्य से पीछा छुड़ा आए हैं हम
अपने घर के दरपनों को बेचकर
चाहते हैं वक्त पर बरसात भी
लोग हरियाले वनों को बेचकर
होटलों में काम करने आ गए
बाल-बच्चे बचपनों को बेचकर
आपको कुछ खास मिल पाया नहीं
दो टके में सज्जनों को बेचकर
आ गए हैं लौटकर बाज़ार से
लोग अपनी गरदनों को बेचकर