"ओ निःसंग ममेतर / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
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आज फिर एक बार | आज फिर एक बार | ||
− | |||
मैं प्यार को जगाता हूँ | मैं प्यार को जगाता हूँ | ||
− | |||
खोल सब मुंदे द्वार | खोल सब मुंदे द्वार | ||
− | |||
इस अगुरु-धूम-गन्ध-रुंधे सोने के घर के | इस अगुरु-धूम-गन्ध-रुंधे सोने के घर के | ||
− | |||
हर कोने को | हर कोने को | ||
− | |||
सुनहली खुली धूप में निल्हाता हूँ। | सुनहली खुली धूप में निल्हाता हूँ। | ||
− | |||
तुम जो मेरी हो, मुझ में हो, | तुम जो मेरी हो, मुझ में हो, | ||
− | |||
सघनतम निविड में | सघनतम निविड में | ||
− | |||
मैं ही जो हो अनन्य | मैं ही जो हो अनन्य | ||
− | |||
तुम्हें मैं दूर बाहर से, प्रान्तर से, | तुम्हें मैं दूर बाहर से, प्रान्तर से, | ||
− | |||
देशावर से, कालेतर से | देशावर से, कालेतर से | ||
− | |||
तल से, अतल से, धरा से, सागर से, | तल से, अतल से, धरा से, सागर से, | ||
− | |||
::::अन्तरीक्ष से, | ::::अन्तरीक्ष से, | ||
− | |||
निर्व्यास तेजस् के निर्गभीर शून्य आकर से | निर्व्यास तेजस् के निर्गभीर शून्य आकर से | ||
− | |||
मैं, समाहित अन्तःपूत, | मैं, समाहित अन्तःपूत, | ||
− | |||
मन्त्राहूत कर तुम्हें | मन्त्राहूत कर तुम्हें | ||
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ओ निःसंग ममेतर, | ओ निःसंग ममेतर, | ||
− | |||
ओ अभिन्न प्यार | ओ अभिन्न प्यार | ||
− | |||
ओ धनी! | ओ धनी! | ||
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आज फिर एक बार | आज फिर एक बार | ||
− | |||
तुम को बुलाता हूँ— | तुम को बुलाता हूँ— | ||
− | |||
और जो मैं हूँ, जो जाना-पहचाना, | और जो मैं हूँ, जो जाना-पहचाना, | ||
− | |||
जिया-अपनाया है, मेरा है, | जिया-अपनाया है, मेरा है, | ||
− | |||
धन है, संचय है, उस की एक-एक कली को | धन है, संचय है, उस की एक-एक कली को | ||
− | |||
::न्योछावर लुटाता हूँ। | ::न्योछावर लुटाता हूँ। | ||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
::२ | ::२ | ||
− | |||
− | |||
जिन शिखरों की | जिन शिखरों की | ||
− | |||
हेम-मज्जित उंगलियों ने | हेम-मज्जित उंगलियों ने | ||
− | |||
निर्विकल्प इंगित से | निर्विकल्प इंगित से | ||
− | |||
जिस निर्व्यास उजाले को | जिस निर्व्यास उजाले को | ||
− | |||
सतत झलकाया है— | सतत झलकाया है— | ||
− | |||
उस में जो छाया मैंने पहचानी है | उस में जो छाया मैंने पहचानी है | ||
− | |||
::तुम्हारी है। | ::तुम्हारी है। | ||
− | |||
− | |||
जिन झीलों की | जिन झीलों की | ||
− | |||
जिन पारदर्शी लहरों ने | जिन पारदर्शी लहरों ने | ||
− | |||
नीचे छिपे शैवाल को सुनहला चमकाया है, | नीचे छिपे शैवाल को सुनहला चमकाया है, | ||
− | |||
निश्चल निस्तल गहराइयों में | निश्चल निस्तल गहराइयों में | ||
− | |||
जो निश्छल उल्लास झलकाया है, | जो निश्छल उल्लास झलकाया है, | ||
− | |||
उस में निर्वाक् मैंने | उस में निर्वाक् मैंने | ||
− | |||
::तुम्हें पाया है। | ::तुम्हें पाया है। | ||
− | |||
− | |||
भटकी हवाएँ जो गाती हैं, | भटकी हवाएँ जो गाती हैं, | ||
− | |||
रात की सिहरती पत्तियों से | रात की सिहरती पत्तियों से | ||
− | |||
अनमनी झरती वारि-बूंदे | अनमनी झरती वारि-बूंदे | ||
− | |||
जिसे टेरती हैं, | जिसे टेरती हैं, | ||
− | |||
फूलों की पीली पियालियाँ | फूलों की पीली पियालियाँ | ||
− | |||
जिस की ही मुस्कान छलकाती हैं, | जिस की ही मुस्कान छलकाती हैं, | ||
− | |||
ओट मिट्टी की, असंख्य रसातुरा शिराएँ | ओट मिट्टी की, असंख्य रसातुरा शिराएँ | ||
− | |||
जिस मात्र को हेरती हैं; | जिस मात्र को हेरती हैं; | ||
− | |||
वसन्त जो लाता है, | वसन्त जो लाता है, | ||
− | |||
निदाघ तपाता है, | निदाघ तपाता है, | ||
− | |||
वर्षा जिसे धोती है, शरद संजोता है, | वर्षा जिसे धोती है, शरद संजोता है, | ||
− | |||
अगहन पकाता और फागुन लहराता | अगहन पकाता और फागुन लहराता | ||
− | |||
और चैत काट, बांध, रौंद, भर कर ले जाता है— | और चैत काट, बांध, रौंद, भर कर ले जाता है— | ||
− | |||
नैसर्गिक चंक्रमण सारा— | नैसर्गिक चंक्रमण सारा— | ||
− | |||
पर दूर क्यों, | पर दूर क्यों, | ||
− | |||
मैं ही जो साँस लेता हूँ | मैं ही जो साँस लेता हूँ | ||
− | |||
जो हवा पीता हूँ— | जो हवा पीता हूँ— | ||
− | |||
उस में हर बार, हर बार, | उस में हर बार, हर बार, | ||
− | |||
अविराम, अक्लान्त, अनाप्यायित | अविराम, अक्लान्त, अनाप्यायित | ||
− | |||
::तुम्हें जीता हूँ। | ::तुम्हें जीता हूँ। | ||
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::३ | ::३ | ||
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घाटियों में | घाटियों में | ||
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हँसियाँ | हँसियाँ | ||
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गूंजती हैं। | गूंजती हैं। | ||
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झरनों में | झरनों में | ||
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अजस्रता | अजस्रता | ||
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प्रतिश्रुत होती है। | प्रतिश्रुत होती है। | ||
− | |||
पंछी ऊँऽऽची | पंछी ऊँऽऽची | ||
− | |||
भरते हैं उड़ान— | भरते हैं उड़ान— | ||
− | |||
आशाओं का इन्द्र-चाप | आशाओं का इन्द्र-चाप | ||
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दोनों छोर नभ के | दोनों छोर नभ के | ||
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::मिलाता है। | ::मिलाता है। | ||
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मुझ में पर—मुझ में—मुझ में— | मुझ में पर—मुझ में—मुझ में— | ||
− | |||
मेरे हर गीत में, मेरी हर ज्ञप्ति में— | मेरे हर गीत में, मेरी हर ज्ञप्ति में— | ||
− | |||
कुछ है जो काँटे सा कसकाता, | कुछ है जो काँटे सा कसकाता, | ||
− | |||
अंगारे सुलगाता है— | अंगारे सुलगाता है— | ||
− | |||
मेरे हर स्पन्दन में, साँस में, समाई में | मेरे हर स्पन्दन में, साँस में, समाई में | ||
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विरह की आप्त व्यथा | विरह की आप्त व्यथा | ||
− | + | :रोती है। | |
− | :रोती | + | |
− | + | ||
− | + | ||
जीना—सुलगना है | जीना—सुलगना है | ||
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जागना—उमंगना है | जागना—उमंगना है | ||
− | |||
चीन्हना—चेतना का | चीन्हना—चेतना का | ||
− | |||
तुम्हारे रंग रंगना है। | तुम्हारे रंग रंगना है। | ||
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::४ | ::४ | ||
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− | |||
मैंने तुम्हें देखा है | मैंने तुम्हें देखा है | ||
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असंख्य बार: | असंख्य बार: | ||
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मेरी इन आँखों में बसी हुई है | मेरी इन आँखों में बसी हुई है | ||
− | |||
छाया उस अनवद्य रूप की। | छाया उस अनवद्य रूप की। | ||
− | |||
− | |||
मेरे नासापुटों में तुम्हारी गन्ध— | मेरे नासापुटों में तुम्हारी गन्ध— | ||
− | |||
मैं स्वयं उस से सुवासित हूँ। | मैं स्वयं उस से सुवासित हूँ। | ||
− | |||
मेरे स्तब्ध मानस में गीत की लहर-सा | मेरे स्तब्ध मानस में गीत की लहर-सा | ||
− | |||
छाया है तुम्हारा स्वर। | छाया है तुम्हारा स्वर। | ||
− | |||
और रसास्वाद: मेरी स्मृति में अभिभूत है। | और रसास्वाद: मेरी स्मृति में अभिभूत है। | ||
− | |||
मैंने तुम्हें छुआ है | मैंने तुम्हें छुआ है | ||
− | |||
मेरी मुट्ठियों में भरी हुई तुम | मेरी मुट्ठियों में भरी हुई तुम | ||
− | |||
मेरी उंगलियों बीच छन कर बही हो— | मेरी उंगलियों बीच छन कर बही हो— | ||
− | |||
कण प्रतिकण आप्त, स्पृष्ट, भुक्त। | कण प्रतिकण आप्त, स्पृष्ट, भुक्त। | ||
− | |||
मैंने तुम्हें चूमा है | मैंने तुम्हें चूमा है | ||
− | |||
और हर चुम्बन की तप्त, लाल, अयस्कठोर छाप | और हर चुम्बन की तप्त, लाल, अयस्कठोर छाप | ||
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मेरा हर रक्त-कण धारे है। | मेरा हर रक्त-कण धारे है। | ||
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:आह! पर मैंने तुम्हें जाना नहीं। | :आह! पर मैंने तुम्हें जाना नहीं। | ||
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::५ | ::५ | ||
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नहीं! मैंने तुम्हें केवल मात्र जाना है। | नहीं! मैंने तुम्हें केवल मात्र जाना है। | ||
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देखा नहीं मैंने कभी, | देखा नहीं मैंने कभी, | ||
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सुना नहीं, छुआ नहीं, | सुना नहीं, छुआ नहीं, | ||
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किया नहीं रसास्वाद— | किया नहीं रसास्वाद— | ||
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ओ स्वतःप्रमाण! मैंने | ओ स्वतःप्रमाण! मैंने | ||
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तुम्हें जाना, | तुम्हें जाना, | ||
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केवल मात्र जाना है। | केवल मात्र जाना है। | ||
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देख मैं सका नहीं: | देख मैं सका नहीं: | ||
− | |||
दीठ रही ओछी, क्योंकि तुम समग्र एक विश्व हो | दीठ रही ओछी, क्योंकि तुम समग्र एक विश्व हो | ||
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छू सका नहीं: | छू सका नहीं: | ||
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अधूरा रहा स्पर्श क्योंकि तुम तरल हो, वायवी हो | अधूरा रहा स्पर्श क्योंकि तुम तरल हो, वायवी हो | ||
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पहचान सका नहीं: तुम | पहचान सका नहीं: तुम | ||
− | |||
मायाविनि, कामरूपा हो। | मायाविनि, कामरूपा हो। | ||
− | |||
− | |||
किन्तु, हाँ, पकड़ सका— | किन्तु, हाँ, पकड़ सका— | ||
− | |||
पकड़ सका, भोग सका | पकड़ सका, भोग सका | ||
− | |||
क्योंकि जीवनानुभूति | क्योंकि जीवनानुभूति | ||
− | |||
बिजली-सी त्वरग, अमोघ एक पंजा है | बिजली-सी त्वरग, अमोघ एक पंजा है | ||
− | |||
बलिष्ठ; | बलिष्ठ; | ||
− | |||
एक जाल निर्वारणीय: | एक जाल निर्वारणीय: | ||
− | |||
अनुभूति से तो | अनुभूति से तो | ||
− | |||
कभी, कहीं, कुछ नहीं | कभी, कहीं, कुछ नहीं | ||
− | |||
:बच के निकलता! | :बच के निकलता! | ||
− | |||
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::६ | ::६ | ||
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− | |||
जीवनानुभूति: एक पंजा कि जिस में | जीवनानुभूति: एक पंजा कि जिस में | ||
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तुम्हारे साथ मैं भी तो पकड़ में | तुम्हारे साथ मैं भी तो पकड़ में | ||
− | |||
आ गया हूँ! | आ गया हूँ! | ||
− | |||
एक जाल, जिस में | एक जाल, जिस में | ||
− | |||
तुम्हारे साथ मैं भी बंध गया हूँ। | तुम्हारे साथ मैं भी बंध गया हूँ। | ||
− | |||
जीवनानुभूति: | जीवनानुभूति: | ||
− | |||
एक चक्की। एक कोल्हू। | एक चक्की। एक कोल्हू। | ||
− | |||
समय कि अजस्र धार का घुमाया हुआ | समय कि अजस्र धार का घुमाया हुआ | ||
− | |||
पर्वती घराट् एक अविराम। | पर्वती घराट् एक अविराम। | ||
− | |||
एक भट्ठी, एक आवाँ स्वतःतप्त: | एक भट्ठी, एक आवाँ स्वतःतप्त: | ||
− | |||
:अनुभूति! | :अनुभूति! | ||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
::७ | ::७ | ||
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− | |||
तुम्हें केवल मात्र जाना है, | तुम्हें केवल मात्र जाना है, | ||
− | |||
केवल मात्र तुम्हें जाना है, | केवल मात्र तुम्हें जाना है, | ||
− | |||
तुम्हें जाना है, अप्रमाद तुम्हें जपा है, | तुम्हें जाना है, अप्रमाद तुम्हें जपा है, | ||
− | |||
तुम्हें स्मरा है। | तुम्हें स्मरा है। | ||
− | |||
और मैंने देखा है— | और मैंने देखा है— | ||
− | |||
और मेरी स्मृति ने | और मेरी स्मृति ने | ||
− | |||
मेरी देखी सारी रूप-राशि को इकाई दी है। | मेरी देखी सारी रूप-राशि को इकाई दी है। | ||
− | |||
मैंने सुना है— | मैंने सुना है— | ||
− | |||
और मेरी अविकल्प स्मृति ने | और मेरी अविकल्प स्मृति ने | ||
− | |||
सभी स्वर एक मूर्छना में गूँथ डाले हैं। | सभी स्वर एक मूर्छना में गूँथ डाले हैं। | ||
− | |||
—सूंघा, और स्मृति ने | —सूंघा, और स्मृति ने | ||
− | |||
विकीर्ण सब गन्धों को | विकीर्ण सब गन्धों को | ||
− | |||
चयित कर दिया एक वृन्त में एक ही वसन्त के। | चयित कर दिया एक वृन्त में एक ही वसन्त के। | ||
− | |||
—मैंने छुआ है: | —मैंने छुआ है: | ||
− | |||
और मेरे ज्ञान ने असंख्य माया-मूर्तियों के | और मेरे ज्ञान ने असंख्य माया-मूर्तियों के | ||
− | |||
दी है वह संहति अचूक | दी है वह संहति अचूक | ||
− | |||
जो-मात्र मेरी पहचानी है | जो-मात्र मेरी पहचानी है | ||
− | |||
जिसे-मात्र मैंने चाहा है। | जिसे-मात्र मैंने चाहा है। | ||
− | |||
—मैंने चूमा है, | —मैंने चूमा है, | ||
− | |||
और, ओ आस्वाद्य मेरी! | और, ओ आस्वाद्य मेरी! | ||
− | |||
ले गयी है प्रत्यभिज्ञा मुझे उत्स तक | ले गयी है प्रत्यभिज्ञा मुझे उत्स तक | ||
− | |||
जिस की पीयूषवर्षी, अनवद्य, अद्वितिय धार | जिस की पीयूषवर्षी, अनवद्य, अद्वितिय धार | ||
− | |||
मुझे आप्यायित करती है। | मुझे आप्यायित करती है। | ||
− | |||
− | |||
हाँ, मैंने तुम्हें जाना है, मैं जानता हूँ, | हाँ, मैंने तुम्हें जाना है, मैं जानता हूँ, | ||
− | |||
पहचानता हूँ, सांगोपांग; | पहचानता हूँ, सांगोपांग; | ||
− | |||
ओर भूलता नहीं हूँ—कभी भूल नहीं सकता! | ओर भूलता नहीं हूँ—कभी भूल नहीं सकता! | ||
− | |||
− | |||
भूलता नहीं हूँ | भूलता नहीं हूँ | ||
− | |||
कभी भूल नहीं सकता | कभी भूल नहीं सकता | ||
− | |||
और मैं बिखरना नहीं चाहता। | और मैं बिखरना नहीं चाहता। | ||
− | |||
आज, मन्त्राहूत ओ प्रियस्व मेरी! | आज, मन्त्राहूत ओ प्रियस्व मेरी! | ||
− | |||
मुझ को जो कहना है, वह इस धधकते क्षण में | मुझ को जो कहना है, वह इस धधकते क्षण में | ||
− | |||
वाग्देवता की यज्ञ-ज्वाला जब तक अभी | वाग्देवता की यज्ञ-ज्वाला जब तक अभी | ||
− | |||
जलती है मेरी इस आविष्ट जिह्वा पर, | जलती है मेरी इस आविष्ट जिह्वा पर, | ||
− | |||
तब तक—मैं कह लूँ: | तब तक—मैं कह लूँ: | ||
− | |||
::मेरे ही दाह का हुताश्न हो साक्षी मेरा! | ::मेरे ही दाह का हुताश्न हो साक्षी मेरा! | ||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
::८ | ::८ | ||
− | |||
− | |||
ओ आहूत! | ओ आहूत! | ||
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ओ प्रत्यक्ष! | ओ प्रत्यक्ष! | ||
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अप्रतिम! | अप्रतिम! | ||
− | |||
ओ स्वयंप्रतिष्ठ! | ओ स्वयंप्रतिष्ठ! | ||
− | |||
सुनो संकल्प मेरा: | सुनो संकल्प मेरा: | ||
− | |||
− | |||
मैंने छुआ है, और मैं छुआ गया हूँ; | मैंने छुआ है, और मैं छुआ गया हूँ; | ||
− | |||
मैने चूमा है, और मैं चूमा गया हूँ; | मैने चूमा है, और मैं चूमा गया हूँ; | ||
− | |||
मैं विजेता हूँ और मुझे जीत लिया गया है; | मैं विजेता हूँ और मुझे जीत लिया गया है; | ||
− | |||
मैं हूँ, और मैं दे दिया गया हूँ; | मैं हूँ, और मैं दे दिया गया हूँ; | ||
− | |||
मैं जिया हूँ, और मेरे भीतर से जी लिया गया है; | मैं जिया हूँ, और मेरे भीतर से जी लिया गया है; | ||
− | |||
मैं मिटा हूँ, मैं पराभूत हूँ, मैं तिरोहित हूँ, | मैं मिटा हूँ, मैं पराभूत हूँ, मैं तिरोहित हूँ, | ||
− | |||
मैं अवतरित हुआ हूँ, मैं आत्मसात् हूँ, | मैं अवतरित हुआ हूँ, मैं आत्मसात् हूँ, | ||
− | |||
अमर्त्य, कालजित् हूँ। | अमर्त्य, कालजित् हूँ। | ||
− | |||
− | |||
मैं चला हूँ | मैं चला हूँ | ||
− | |||
पहचानकर, | पहचानकर, | ||
− | |||
प्रकाश में, | प्रकाश में, | ||
− | |||
दिक्-प्रबुद्ध, | दिक्-प्रबुद्ध, | ||
− | |||
लक्ष्यसिद्ध। | लक्ष्यसिद्ध। | ||
− | |||
इसी बल | इसी बल | ||
− | |||
जहाँ-जहाँ पहचान हुई, मैंने | जहाँ-जहाँ पहचान हुई, मैंने | ||
− | |||
वह ठाँव छोड़ दी; | वह ठाँव छोड़ दी; | ||
− | |||
ममता ने तरिणी को तीर-ओर मोड़ा— | ममता ने तरिणी को तीर-ओर मोड़ा— | ||
− | |||
वह डोर मैंने तोड़ दी। | वह डोर मैंने तोड़ दी। | ||
− | |||
हर लीक पोंछी, हर डगर मिटा दी, हर दीप | हर लीक पोंछी, हर डगर मिटा दी, हर दीप | ||
− | |||
::::निवा मैंने | ::::निवा मैंने | ||
− | |||
बढ़ अन्धकार में | बढ़ अन्धकार में | ||
− | |||
अपनी धमनी | अपनी धमनी | ||
− | |||
:तेरे साथ जोड़ दी। | :तेरे साथ जोड़ दी। | ||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
::९ | ::९ | ||
− | |||
− | |||
ओ मेरी सह-तितिर्षु, | ओ मेरी सह-तितिर्षु, | ||
− | |||
हमीं तो सागर हैं | हमीं तो सागर हैं | ||
− | |||
जिस के हम किनारे हैं क्योंकि जिसे हमने | जिस के हम किनारे हैं क्योंकि जिसे हमने | ||
− | |||
पार कर लिया है। | पार कर लिया है। | ||
− | |||
− | |||
ओ मेरी सहयायिनि, | ओ मेरी सहयायिनि, | ||
− | |||
हमीं वह निर्मल तल-दर्शी वापी हैं | हमीं वह निर्मल तल-दर्शी वापी हैं | ||
− | |||
जिसे हम ओक-भर पीते हैं— | जिसे हम ओक-भर पीते हैं— | ||
− | |||
बार-बार, तृषा से, तृप्ति से, आमोद से, कौतुक से, | बार-बार, तृषा से, तृप्ति से, आमोद से, कौतुक से, | ||
− | |||
क्योंकि हमीं छिपा वह उत्स हैं जो उसे | क्योंकि हमीं छिपा वह उत्स हैं जो उसे | ||
− | |||
पूरित किए रहता है। | पूरित किए रहता है। | ||
− | |||
− | |||
ओ मेरी सहधर्मा, | ओ मेरी सहधर्मा, | ||
− | |||
छू दे मेरा कर: आहुति दे दूँ— | छू दे मेरा कर: आहुति दे दूँ— | ||
− | |||
हमीं याजक हैं, हमीं यज्ञ, | हमीं याजक हैं, हमीं यज्ञ, | ||
− | |||
जिसमें हुत हमीं परस्परेष्टि। | जिसमें हुत हमीं परस्परेष्टि। | ||
− | |||
ओ मेरी अतृप्त, दुःशम्य धधक, मेरी होता, | ओ मेरी अतृप्त, दुःशम्य धधक, मेरी होता, | ||
− | |||
ओ मेरी हविष्यान्न, | ओ मेरी हविष्यान्न, | ||
− | |||
आ तू, मुझे खा | आ तू, मुझे खा | ||
− | |||
जैसे मैंने तुझे खाया है | जैसे मैंने तुझे खाया है | ||
− | |||
प्रसादवत्। | प्रसादवत्। | ||
− | |||
हम परस्पराशी हैं क्योंकि परस्परपोषी हैं | हम परस्पराशी हैं क्योंकि परस्परपोषी हैं | ||
− | |||
:::परस्परजीवी हैं। | :::परस्परजीवी हैं। | ||
− | |||
− | |||
− | |||
− | |||
::१० | ::१० | ||
− | |||
− | |||
ओ सहजन्मा, सह-सुभगा | ओ सहजन्मा, सह-सुभगा | ||
− | |||
नित्योढ़ा, | नित्योढ़ा, | ||
− | |||
सहभोक्ता, | सहभोक्ता, | ||
− | |||
सहजीवा, कल्याणी। | सहजीवा, कल्याणी। | ||
− | |||
− | |||
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− | |||
::११ | ::११ | ||
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− | |||
ओ मेरे पुण्य-प्रभव, | ओ मेरे पुण्य-प्रभव, | ||
− | |||
मेरे आलोक-स्नात, पद्म-पत्रस्थ जल-बिन्दु, | मेरे आलोक-स्नात, पद्म-पत्रस्थ जल-बिन्दु, | ||
− | |||
मेरी आँखों के तारे, | मेरी आँखों के तारे, | ||
− | |||
ओ ध्रुव, ओ चंचल, | ओ ध्रुव, ओ चंचल, | ||
− | |||
ओ तपोजात, | ओ तपोजात, | ||
− | |||
मेरे कोटि-कोटि लहरों से मंजे एकमात्र मोती | मेरे कोटि-कोटि लहरों से मंजे एकमात्र मोती | ||
− | |||
ओ विश्व-प्रतिम, | ओ विश्व-प्रतिम, | ||
− | |||
अब तू इस कृति सीप को अपने में समेट ले, | अब तू इस कृति सीप को अपने में समेट ले, | ||
− | |||
यह परदृश्य सोख ले। | यह परदृश्य सोख ले। | ||
− | |||
स्वाति बूंद! चातक को आत्मलीन तू कर ले! | स्वाति बूंद! चातक को आत्मलीन तू कर ले! | ||
− | |||
ओ वरिष्ठ! ओ वर दे! ओ वर ले! | ओ वरिष्ठ! ओ वर दे! ओ वर ले! | ||
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23:05, 2 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
आज फिर एक बार
मैं प्यार को जगाता हूँ
खोल सब मुंदे द्वार
इस अगुरु-धूम-गन्ध-रुंधे सोने के घर के
हर कोने को
सुनहली खुली धूप में निल्हाता हूँ।
तुम जो मेरी हो, मुझ में हो,
सघनतम निविड में
मैं ही जो हो अनन्य
तुम्हें मैं दूर बाहर से, प्रान्तर से,
देशावर से, कालेतर से
तल से, अतल से, धरा से, सागर से,
अन्तरीक्ष से,
निर्व्यास तेजस् के निर्गभीर शून्य आकर से
मैं, समाहित अन्तःपूत,
मन्त्राहूत कर तुम्हें
ओ निःसंग ममेतर,
ओ अभिन्न प्यार
ओ धनी!
आज फिर एक बार
तुम को बुलाता हूँ—
और जो मैं हूँ, जो जाना-पहचाना,
जिया-अपनाया है, मेरा है,
धन है, संचय है, उस की एक-एक कली को
न्योछावर लुटाता हूँ।
२
जिन शिखरों की
हेम-मज्जित उंगलियों ने
निर्विकल्प इंगित से
जिस निर्व्यास उजाले को
सतत झलकाया है—
उस में जो छाया मैंने पहचानी है
तुम्हारी है।
जिन झीलों की
जिन पारदर्शी लहरों ने
नीचे छिपे शैवाल को सुनहला चमकाया है,
निश्चल निस्तल गहराइयों में
जो निश्छल उल्लास झलकाया है,
उस में निर्वाक् मैंने
तुम्हें पाया है।
भटकी हवाएँ जो गाती हैं,
रात की सिहरती पत्तियों से
अनमनी झरती वारि-बूंदे
जिसे टेरती हैं,
फूलों की पीली पियालियाँ
जिस की ही मुस्कान छलकाती हैं,
ओट मिट्टी की, असंख्य रसातुरा शिराएँ
जिस मात्र को हेरती हैं;
वसन्त जो लाता है,
निदाघ तपाता है,
वर्षा जिसे धोती है, शरद संजोता है,
अगहन पकाता और फागुन लहराता
और चैत काट, बांध, रौंद, भर कर ले जाता है—
नैसर्गिक चंक्रमण सारा—
पर दूर क्यों,
मैं ही जो साँस लेता हूँ
जो हवा पीता हूँ—
उस में हर बार, हर बार,
अविराम, अक्लान्त, अनाप्यायित
तुम्हें जीता हूँ।
३
घाटियों में
हँसियाँ
गूंजती हैं।
झरनों में
अजस्रता
प्रतिश्रुत होती है।
पंछी ऊँऽऽची
भरते हैं उड़ान—
आशाओं का इन्द्र-चाप
दोनों छोर नभ के
मिलाता है।
मुझ में पर—मुझ में—मुझ में—
मेरे हर गीत में, मेरी हर ज्ञप्ति में—
कुछ है जो काँटे सा कसकाता,
अंगारे सुलगाता है—
मेरे हर स्पन्दन में, साँस में, समाई में
विरह की आप्त व्यथा
रोती है।
जीना—सुलगना है
जागना—उमंगना है
चीन्हना—चेतना का
तुम्हारे रंग रंगना है।
४
मैंने तुम्हें देखा है
असंख्य बार:
मेरी इन आँखों में बसी हुई है
छाया उस अनवद्य रूप की।
मेरे नासापुटों में तुम्हारी गन्ध—
मैं स्वयं उस से सुवासित हूँ।
मेरे स्तब्ध मानस में गीत की लहर-सा
छाया है तुम्हारा स्वर।
और रसास्वाद: मेरी स्मृति में अभिभूत है।
मैंने तुम्हें छुआ है
मेरी मुट्ठियों में भरी हुई तुम
मेरी उंगलियों बीच छन कर बही हो—
कण प्रतिकण आप्त, स्पृष्ट, भुक्त।
मैंने तुम्हें चूमा है
और हर चुम्बन की तप्त, लाल, अयस्कठोर छाप
मेरा हर रक्त-कण धारे है।
आह! पर मैंने तुम्हें जाना नहीं।
५
नहीं! मैंने तुम्हें केवल मात्र जाना है।
देखा नहीं मैंने कभी,
सुना नहीं, छुआ नहीं,
किया नहीं रसास्वाद—
ओ स्वतःप्रमाण! मैंने
तुम्हें जाना,
केवल मात्र जाना है।
देख मैं सका नहीं:
दीठ रही ओछी, क्योंकि तुम समग्र एक विश्व हो
छू सका नहीं:
अधूरा रहा स्पर्श क्योंकि तुम तरल हो, वायवी हो
पहचान सका नहीं: तुम
मायाविनि, कामरूपा हो।
किन्तु, हाँ, पकड़ सका—
पकड़ सका, भोग सका
क्योंकि जीवनानुभूति
बिजली-सी त्वरग, अमोघ एक पंजा है
बलिष्ठ;
एक जाल निर्वारणीय:
अनुभूति से तो
कभी, कहीं, कुछ नहीं
बच के निकलता!
६
जीवनानुभूति: एक पंजा कि जिस में
तुम्हारे साथ मैं भी तो पकड़ में
आ गया हूँ!
एक जाल, जिस में
तुम्हारे साथ मैं भी बंध गया हूँ।
जीवनानुभूति:
एक चक्की। एक कोल्हू।
समय कि अजस्र धार का घुमाया हुआ
पर्वती घराट् एक अविराम।
एक भट्ठी, एक आवाँ स्वतःतप्त:
अनुभूति!
७
तुम्हें केवल मात्र जाना है,
केवल मात्र तुम्हें जाना है,
तुम्हें जाना है, अप्रमाद तुम्हें जपा है,
तुम्हें स्मरा है।
और मैंने देखा है—
और मेरी स्मृति ने
मेरी देखी सारी रूप-राशि को इकाई दी है।
मैंने सुना है—
और मेरी अविकल्प स्मृति ने
सभी स्वर एक मूर्छना में गूँथ डाले हैं।
—सूंघा, और स्मृति ने
विकीर्ण सब गन्धों को
चयित कर दिया एक वृन्त में एक ही वसन्त के।
—मैंने छुआ है:
और मेरे ज्ञान ने असंख्य माया-मूर्तियों के
दी है वह संहति अचूक
जो-मात्र मेरी पहचानी है
जिसे-मात्र मैंने चाहा है।
—मैंने चूमा है,
और, ओ आस्वाद्य मेरी!
ले गयी है प्रत्यभिज्ञा मुझे उत्स तक
जिस की पीयूषवर्षी, अनवद्य, अद्वितिय धार
मुझे आप्यायित करती है।
हाँ, मैंने तुम्हें जाना है, मैं जानता हूँ,
पहचानता हूँ, सांगोपांग;
ओर भूलता नहीं हूँ—कभी भूल नहीं सकता!
भूलता नहीं हूँ
कभी भूल नहीं सकता
और मैं बिखरना नहीं चाहता।
आज, मन्त्राहूत ओ प्रियस्व मेरी!
मुझ को जो कहना है, वह इस धधकते क्षण में
वाग्देवता की यज्ञ-ज्वाला जब तक अभी
जलती है मेरी इस आविष्ट जिह्वा पर,
तब तक—मैं कह लूँ:
मेरे ही दाह का हुताश्न हो साक्षी मेरा!
८
ओ आहूत!
ओ प्रत्यक्ष!
अप्रतिम!
ओ स्वयंप्रतिष्ठ!
सुनो संकल्प मेरा:
मैंने छुआ है, और मैं छुआ गया हूँ;
मैने चूमा है, और मैं चूमा गया हूँ;
मैं विजेता हूँ और मुझे जीत लिया गया है;
मैं हूँ, और मैं दे दिया गया हूँ;
मैं जिया हूँ, और मेरे भीतर से जी लिया गया है;
मैं मिटा हूँ, मैं पराभूत हूँ, मैं तिरोहित हूँ,
मैं अवतरित हुआ हूँ, मैं आत्मसात् हूँ,
अमर्त्य, कालजित् हूँ।
मैं चला हूँ
पहचानकर,
प्रकाश में,
दिक्-प्रबुद्ध,
लक्ष्यसिद्ध।
इसी बल
जहाँ-जहाँ पहचान हुई, मैंने
वह ठाँव छोड़ दी;
ममता ने तरिणी को तीर-ओर मोड़ा—
वह डोर मैंने तोड़ दी।
हर लीक पोंछी, हर डगर मिटा दी, हर दीप
निवा मैंने
बढ़ अन्धकार में
अपनी धमनी
तेरे साथ जोड़ दी।
९
ओ मेरी सह-तितिर्षु,
हमीं तो सागर हैं
जिस के हम किनारे हैं क्योंकि जिसे हमने
पार कर लिया है।
ओ मेरी सहयायिनि,
हमीं वह निर्मल तल-दर्शी वापी हैं
जिसे हम ओक-भर पीते हैं—
बार-बार, तृषा से, तृप्ति से, आमोद से, कौतुक से,
क्योंकि हमीं छिपा वह उत्स हैं जो उसे
पूरित किए रहता है।
ओ मेरी सहधर्मा,
छू दे मेरा कर: आहुति दे दूँ—
हमीं याजक हैं, हमीं यज्ञ,
जिसमें हुत हमीं परस्परेष्टि।
ओ मेरी अतृप्त, दुःशम्य धधक, मेरी होता,
ओ मेरी हविष्यान्न,
आ तू, मुझे खा
जैसे मैंने तुझे खाया है
प्रसादवत्।
हम परस्पराशी हैं क्योंकि परस्परपोषी हैं
परस्परजीवी हैं।
१०
ओ सहजन्मा, सह-सुभगा
नित्योढ़ा,
सहभोक्ता,
सहजीवा, कल्याणी।
११
ओ मेरे पुण्य-प्रभव,
मेरे आलोक-स्नात, पद्म-पत्रस्थ जल-बिन्दु,
मेरी आँखों के तारे,
ओ ध्रुव, ओ चंचल,
ओ तपोजात,
मेरे कोटि-कोटि लहरों से मंजे एकमात्र मोती
ओ विश्व-प्रतिम,
अब तू इस कृति सीप को अपने में समेट ले,
यह परदृश्य सोख ले।
स्वाति बूंद! चातक को आत्मलीन तू कर ले!
ओ वरिष्ठ! ओ वर दे! ओ वर ले!