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"कि हम नहीं रहेंगे / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर

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|संग्रह=कितनी नावों में कितनी बार / अज्ञेय
 
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शिखरों पर जो प्यार किया
 
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घाटियों में उसे याद करते रहे!
 
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फिर तलहटियों में पछताया किए
 
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कि क्यों जीवन यों बरबाद करते रहे!
 
कि क्यों जीवन यों बरबाद करते रहे!
 
 
  
 
पर जिस दिन सहसा आ निकले
 
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सागर के किनारे—
 
सागर के किनारे—
 
 
ज्वार की पहली ही उत्ताल तरंग के सहारे
 
ज्वार की पहली ही उत्ताल तरंग के सहारे
 
 
पलक की झपक-भर में पहचाना
 
पलक की झपक-भर में पहचाना
 
 
कि यह अपने को कर्त्ता जो माना—
 
कि यह अपने को कर्त्ता जो माना—
 
 
यही तो प्रमाद करते रहे!
 
यही तो प्रमाद करते रहे!
 
 
  
 
शिखर तो सभी अभी हैं,
 
शिखर तो सभी अभी हैं,
 
 
घाटियों में हरियालियाँ छाई हैं;
 
घाटियों में हरियालियाँ छाई हैं;
 
 
तलहटियाँ तो और भी  
 
तलहटियाँ तो और भी  
 
 
नई बस्तियों में उभर आई हैं।
 
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सभी कुछ तो बना है, रहेगा:
 
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एक प्यार ही को क्या
 
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नश्वर हम कहेंगे—
 
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इस लिए कि हम नहीं रहेंगे?
 
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23:08, 2 नवम्बर 2009 का अवतरण

हमने
शिखरों पर जो प्यार किया
घाटियों में उसे याद करते रहे!
फिर तलहटियों में पछताया किए
कि क्यों जीवन यों बरबाद करते रहे!

पर जिस दिन सहसा आ निकले
सागर के किनारे—
ज्वार की पहली ही उत्ताल तरंग के सहारे
पलक की झपक-भर में पहचाना
कि यह अपने को कर्त्ता जो माना—
यही तो प्रमाद करते रहे!

शिखर तो सभी अभी हैं,
घाटियों में हरियालियाँ छाई हैं;
तलहटियाँ तो और भी
नई बस्तियों में उभर आई हैं।

सभी कुछ तो बना है, रहेगा:
एक प्यार ही को क्या
नश्वर हम कहेंगे—
इस लिए कि हम नहीं रहेंगे?