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गुल-लालः / अज्ञेय

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|संग्रह=कितनी नावों में कितनी बार / अज्ञेय
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लालः के इस
 
भरे हुए दिल-से पके लाल फूल को देखो
 जो भोरर भोर के साथ विकसेगा फिर साँझ के संग सकुचायेगासकुचाएगा
और (अगले दिन) फिर एक बार खिलेगा
 फिर साँझ को मुंद जायेगा ।जाएगा।
और फिर एक बार उमंगेगा
तब कुम्हलाता हुआ काला पड़ जायेगा।
तब कुम्हलाता हुआ काला पड़ जायेगा ।   पर मैं--वह मैं—वह भरा हुआ दिल--दिल—क्या मुझे फिर कभी खिलना है ? 
जिस में (यदि) हँसना है
 वह भोर ही क्या फिर आयेगा ?</poem>
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