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"तुम्हें नहीं तो किसे और / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
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− | सच्चाई को— | + | औ' दुस्सह |
− | सदा आँच में तपने को— | + | सच्चाई को— |
− | तुम, ओ एक, निःसंग, अकेले, | + | सदा आँच में तपने को— |
− | मानव, | + | तुम, ओ एक, निःसंग, अकेले, |
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+ | तुम को—मेरे भाई को! | ||
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21:39, 3 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
तुम्हें नहीं तो किसे और
मैं दूँ
अपने को
(जो भी मैं हूँ)?
तुम जिस ने तोड़ा है
मेरे हर झूठे सपने को—
जिस ने बेपनाह
मुझे झंझोड़ा है
जाग-जाग कर
तकने को
आग-सी नंगी, निर्ममत्व
औ' दुस्सह
सच्चाई को—
सदा आँच में तपने को—
तुम, ओ एक, निःसंग, अकेले,
मानव,
तुम को—मेरे भाई को!