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"पेरियार / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर

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इन की झांझर में जीवन <br>
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कहा अनकहा रह जाता है। <br>
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वेणी आँचल की रेती पर <br>
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लहर-डोर थामे, ओ मन! <br>
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तू बढ़ता कहाँ जाएगा? <br>
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(पेरियार केरल की एक नदी है जिसके किनारे कालडि में शंकराचार्य का जन्म हुआ था।)
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21:40, 3 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

बकरी के बच्चे की मिमियाहट पर तिरता
वह चम्पे का फूल
काँपता गिरता
पल-भर घिरता
है कगार की ओट
भँवर की किरण-गर्भ
कलसी में:
अर्द्धमण्डली खींच
निकल कर बह जाता है।

और घाट की सँकरी सीढ़ी पर
घुटने पर टेक गगरिया
खड़ी बहुरिया
थिर पलकों को एकाएक झुका,
कर ओट भँवरती धूमिल बिजली को,
फिर उठा बोझ
चढ़ने लगती है।

ओ साँस! समय जो कुछ लावे
सब सह जाता है:
दिन, पल, छिन—
इन की झांझर में जीवन
कहा अनकहा रह जाता है।
बहू हो गई ओझल:
नदी पर के दोपहरी सन्नाटे ने फिर
बढ़ कर इस कछार की कौली भर ली:
वेणी आँचल की रेती पर
झरती बून्दों की
लहर-डोर थामे, ओ मन!
तू बढ़ता कहाँ जाएगा?



(पेरियार केरल की एक नदी है जिसके किनारे कालडि में शंकराचार्य का जन्म हुआ था।)