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"मन बहुत सोचता है / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
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खुली घासों में दौड़ती मेघ-छायाएँ, | खुली घासों में दौड़ती मेघ-छायाएँ, | ||
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पहाड़ी नदीः पारदर्श पानी, | पहाड़ी नदीः पारदर्श पानी, | ||
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धूप-धुले तल के रंगारग पत्थर, | धूप-धुले तल के रंगारग पत्थर, | ||
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सब देख बहुत गहरे कहीं जो उठे, | सब देख बहुत गहरे कहीं जो उठे, | ||
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21:54, 3 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
मन बहुत सोचता है कि उदास न हो
पर उदासी के बिना रहा कैसे जाए?
शहर के दूर के तनाव-दबाव कोई सह भी ले,
पर यह अपने ही रचे एकांत का दबाब सहा कैसे जाए!
नील आकाश, तैरते-से मेघ के टुकड़े,
खुली घासों में दौड़ती मेघ-छायाएँ,
पहाड़ी नदीः पारदर्श पानी,
धूप-धुले तल के रंगारग पत्थर,
सब देख बहुत गहरे कहीं जो उठे,
वह कहूँ भी तो सुनने को कोई पास न हो—
इसी पर जो जी में उठे वह कहा कैसे जाए!
मन बहुत सोचता है कि उदास न हो
पर उदासी के बिना रहा कैसे जाए?