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"मन बहुत सोचता है / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर

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मन बहुत सोचता है कि उदास न हो  
 
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पर उदासी के बिना रहा कैसे जाए?  
 
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शहर के दूर के तनाव-दबाव कोई सह भी ले,  
 
शहर के दूर के तनाव-दबाव कोई सह भी ले,  
 
 
पर यह अपने ही रचे एकांत का दबाब सहा कैसे जाए!  
 
पर यह अपने ही रचे एकांत का दबाब सहा कैसे जाए!  
 
 
  
 
नील आकाश, तैरते-से मेघ के टुकड़े,  
 
नील आकाश, तैरते-से मेघ के टुकड़े,  
 
 
खुली घासों में दौड़ती मेघ-छायाएँ,  
 
खुली घासों में दौड़ती मेघ-छायाएँ,  
 
 
पहाड़ी नदीः पारदर्श पानी,  
 
पहाड़ी नदीः पारदर्श पानी,  
 
 
धूप-धुले तल के रंगारग पत्थर,  
 
धूप-धुले तल के रंगारग पत्थर,  
 
 
सब देख बहुत गहरे कहीं जो उठे,  
 
सब देख बहुत गहरे कहीं जो उठे,  
 
 
वह कहूँ भी तो सुनने को कोई पास न हो—  
 
वह कहूँ भी तो सुनने को कोई पास न हो—  
 
 
इसी पर जो जी में उठे वह कहा कैसे जाए!  
 
इसी पर जो जी में उठे वह कहा कैसे जाए!  
 
 
  
 
मन बहुत सोचता है कि उदास न हो  
 
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पर उदासी के बिना रहा कैसे जाए?
 
पर उदासी के बिना रहा कैसे जाए?
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21:54, 3 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

मन बहुत सोचता है कि उदास न हो
पर उदासी के बिना रहा कैसे जाए?

शहर के दूर के तनाव-दबाव कोई सह भी ले,
पर यह अपने ही रचे एकांत का दबाब सहा कैसे जाए!

नील आकाश, तैरते-से मेघ के टुकड़े,
खुली घासों में दौड़ती मेघ-छायाएँ,
पहाड़ी नदीः पारदर्श पानी,
धूप-धुले तल के रंगारग पत्थर,
सब देख बहुत गहरे कहीं जो उठे,
वह कहूँ भी तो सुनने को कोई पास न हो—
इसी पर जो जी में उठे वह कहा कैसे जाए!

मन बहुत सोचता है कि उदास न हो
पर उदासी के बिना रहा कैसे जाए?