भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जाड़ों मे / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=सन्नाटे का छन्द / अज्ञेय
 
|संग्रह=सन्नाटे का छन्द / अज्ञेय
 
}}  
 
}}  
 
+
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 
लोग बहुत पास आ गये हैं।
 
लोग बहुत पास आ गये हैं।
 
 
पेड़ दूर हटते हुए
 
पेड़ दूर हटते हुए
 
 
कुहासे में खो गये हैं  
 
कुहासे में खो गये हैं  
 
 
और पंछी (जो ऋत्विक् हैं)
 
और पंछी (जो ऋत्विक् हैं)
 
 
चुप लगा गये हैं।
 
चुप लगा गये हैं।
 
 
  
 
बर्लिन
 
बर्लिन
  
 
जून १९७६
 
जून १९७६
 +
</poem>

22:12, 3 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

लोग बहुत पास आ गये हैं।
पेड़ दूर हटते हुए
कुहासे में खो गये हैं
और पंछी (जो ऋत्विक् हैं)
चुप लगा गये हैं।

बर्लिन

जून १९७६