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"मुक्तिकामी चेतना अभ्यर्थना इतिहास की / अदम गोंडवी" के अवतरणों में अंतर
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यह समझदारों की दुनिया है विरोधाभास की | यह समझदारों की दुनिया है विरोधाभास की |
22:21, 3 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
मुक्तिकामी चेतना अभ्यर्थना इतिहास की
यह समझदारों की दुनिया है विरोधाभास की
आप कहते हैं इसे जिस देश का स्वर्णिम अतीत
वो कहानी है महज़ प्रतिरोध की ,संत्रास की
यक्ष प्रश्नों में उलझ कर रह गई बूढ़ी सदी
ये परीक्षा की घड़ी है क्या हमारे व्यास की?
इस व्यवस्था ने नई पीढ़ी को आखिर क्या दिया
सेक्स की रंगीनियाँ या गोलियाँ सल्फ़ास की
याद रखिये यूँ नहीं ढलते हैं कविता में विचार
होता है परिपाक धीमी आँच पर एहसास की.