भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ग़द्दार / अनवर ईरज" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनवर ईरज }} तुमने बावन साल ग़द्दार, ग़द्दार का एक ही ना...) |
|||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=अनवर ईरज | |रचनाकार=अनवर ईरज | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatKavita}} | |
+ | <poem> | ||
तुमने बावन साल | तुमने बावन साल | ||
− | |||
ग़द्दार, ग़द्दार | ग़द्दार, ग़द्दार | ||
− | + | का एक ही नारा बुलंद किया | |
− | का एक ही नारा | + | |
− | + | ||
कि एक झूठ | कि एक झूठ | ||
− | |||
सच बन जाए | सच बन जाए | ||
− | |||
लेकिन | लेकिन | ||
− | |||
शायद तुम भूल गए | शायद तुम भूल गए | ||
− | |||
मेरी | मेरी | ||
− | |||
ज़र्रे-ज़र्रे से वफ़ादारी | ज़र्रे-ज़र्रे से वफ़ादारी | ||
− | |||
जो तुम्हें, बावन साल | जो तुम्हें, बावन साल | ||
− | |||
दुनिया के सामने | दुनिया के सामने | ||
− | |||
झुठलाती रही | झुठलाती रही | ||
− | |||
और तुम इस सदी के | और तुम इस सदी के | ||
− | |||
सब से बड़े काज़िब | सब से बड़े काज़िब | ||
− | |||
साबित हुए | साबित हुए | ||
− | |||
निस्फ़ सदी की | निस्फ़ सदी की | ||
− | |||
ये तेरी कोशिश | ये तेरी कोशिश | ||
− | |||
झूठ, सच का | झूठ, सच का | ||
− | |||
लबादा बदल तो सकती थी | लबादा बदल तो सकती थी | ||
− | |||
लेकिन | लेकिन | ||
− | |||
तुम्हें कौन समझाए | तुम्हें कौन समझाए | ||
− | |||
कि आफ़ाक़ी सच | कि आफ़ाक़ी सच | ||
− | |||
अपना लबादा | अपना लबादा | ||
− | |||
नहीं बदलता | नहीं बदलता | ||
+ | </poem> |
19:04, 4 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
तुमने बावन साल
ग़द्दार, ग़द्दार
का एक ही नारा बुलंद किया
कि एक झूठ
सच बन जाए
लेकिन
शायद तुम भूल गए
मेरी
ज़र्रे-ज़र्रे से वफ़ादारी
जो तुम्हें, बावन साल
दुनिया के सामने
झुठलाती रही
और तुम इस सदी के
सब से बड़े काज़िब
साबित हुए
निस्फ़ सदी की
ये तेरी कोशिश
झूठ, सच का
लबादा बदल तो सकती थी
लेकिन
तुम्हें कौन समझाए
कि आफ़ाक़ी सच
अपना लबादा
नहीं बदलता