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"गोबर पाथती बुढ़िया / अनिल कुमार सिंह" के अवतरणों में अंतर

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देख सकते हो उसमें अपनी शक्ल<br>
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उससे मिलो  
जो हमें उपलब्ध है<br>
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सबसे सुघड़ सलीका।
 
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21:30, 4 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

इस गोबर पाथती बुढ़िया को
हमारे बारे में कुछ नहीं मालूम !

धीरे-धीरे उतरती है शाम
उसकी जलाई उपलियों का धुआँ
गाँव पर चँदोवे-सा तन जाता है।

ठीक यहीं से शुरू होता है
हमारा सुलगना,
गाँव के अधिकांश चूल्हों पर
पानी पड़ जाता है
ठीक उसी समय

हमसे अपरिचय के बावजूद
हमारे हर परिवर्तन को
हमसे ज्यादा समझती है बुढ़िया

गोबर पाथती बुढ़िया
एक आईना है जिसमें हमारा
हर अक्स बहुत साफ नज़र आता है

तुम कहीं भी हो, किसी भी वक्त
बस में, ट्रेन में
या अन्तरिक्ष शटल कोलम्बिया में
तुम कहीं भी
किसी भी ठौर
देख सकते हो उसमें अपनी शक्ल

वह एक सुविधा है
जो हमें उपलब्ध है
जीवित आदमी की गर्माहट है वह
हमारे वर्तमान की
सबसे मूल्यवान धरोहर

उससे मिलो
वह जार्ज आर्वेल नहीं है
वह बताएगी
इक्कीसवीं सदी में जीने का
सबसे सुघड़ सलीका।