भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"एकांतवास / अभिज्ञात" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अभिज्ञात }} <poem> इस नगर चेतना का प्रतिफल भाये तुमक...) |
|||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=अभिज्ञात | |रचनाकार=अभिज्ञात | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
इस नगर चेतना का प्रतिफल | इस नगर चेतना का प्रतिफल |
22:47, 4 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
इस नगर चेतना का प्रतिफल
भाये तुमको नित कोलाहल
मुझको प्रिय मम् एकांतवास।
उनको विस्मृत कर गौरान्वित
जिनकी सुधियों का मैं रखैल
अति दुलार से पोस रहा मैं
इक पीड़ा की अमरबेल
सुन मरुथल की मार्मिक गुहार
मुझसे तू संबल ले उधार
मुझमें तरुणाई का विकास।
मैं चुके-चुके विश्वासों के
अभिनव अभिनय में छला हुआ
अभियोगों का बन शिलाखण्ड
जड़ता साधे हूं ढला हुआ
तुमको भाये, तो नृत्य मेरा
तुमको गाये, वह वह कृत्य मेरा
तुमसे मेरा हर शिलान्यास।