भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पुण्य फलीभूत हुआ / अमरनाथ श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=अमरनाथ श्रीवास्तव
 
|रचनाकार=अमरनाथ श्रीवास्तव
 
}}
 
}}
पुण्य फलीभूत हुआ कल्प है नया<br>
+
{{KKCatKavita}}
सोने की जीभ मिली<br>
+
<poem>
स्वाद तो गया<br><br>
+
पुण्य फलीभूत हुआ कल्प है नया  
 +
सोने की जीभ मिली  
 +
स्वाद तो गया
  
छाया के आदी हैं गमलों के पौधे<br>
+
छाया के आदी हैं गमलों के पौधे  
जीवन के मंत्र हुए सुलह और सौदे<br>
+
जीवन के मंत्र हुए सुलह और सौदे  
अपना जड़ भूल गई <br>
+
अपना जड़ भूल गई
द्वार की जया<br><br>
+
द्वार की जया
  
हवा और पानी का अनुकूलन इतना<br>
+
हवा और पानी का अनुकूलन इतना  
बंद खिड़कियाँ बाहर की सोचें कितना<br>
+
बंद खिड़कियाँ बाहर की सोचें कितना  
अपनी सुविधा से है <br>
+
अपनी सुविधा से है
आँख में दया<br><br>
+
आँख में दया
  
मंज़िल दर मंज़िल है एक ज़हर धीमा<br>
+
मंज़िल दर मंज़िल है एक ज़हर धीमा  
सीढ़ियाँ बताती है घुटनों की सीमा<br>
+
सीढ़ियाँ बताती है घुटनों की सीमा  
मुझसे तो ऊँची है <br>
+
मुझसे तो ऊँची है
डाल पर बया<br>
+
डाल पर बया  
 +
</poem>

23:50, 4 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

पुण्य फलीभूत हुआ कल्प है नया
सोने की जीभ मिली
स्वाद तो गया

छाया के आदी हैं गमलों के पौधे
जीवन के मंत्र हुए सुलह और सौदे
अपना जड़ भूल गई
द्वार की जया

हवा और पानी का अनुकूलन इतना
बंद खिड़कियाँ बाहर की सोचें कितना
अपनी सुविधा से है
आँख में दया

मंज़िल दर मंज़िल है एक ज़हर धीमा
सीढ़ियाँ बताती है घुटनों की सीमा
मुझसे तो ऊँची है
डाल पर बया