भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घर पहुँचना / कुंवर नारायण

9 bytes added, 20:31, 4 नवम्बर 2009
|रचनाकार=कुंवर नारायण
}}
{{KKCatKavita‎}}
<poem>
हम सब एक सीधी ट्रेन पकड़ कर
 
अपने अपने घर पहुँचना चाहते
 
 
 
हम सब ट्रेनें बदलने की
 
झंझटों से बचना चाहते
 
 
 
हम सब चाहते एक चरम यात्रा
 
और एक परम धाम
 
 
 
हम सोच लेते कि यात्राएँ दुखद हैं
 
और घर उनसे मुक्ति
 
 
 
सचाई यूँ भी हो सकती है
 
कि यात्रा एक अवसर हो
 
और घर एक संभावना
 
 
 
ट्रेनें बदलना
 
विचार बदलने की तरह हो
 
और हम सब जब जहाँ जिनके बीच हों
 
वही हो
 
घर पहुँचना
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,163
edits