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बुझा क्यों उनको जाती मूक,
 
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:::रजतप्याले में निद्रा ढाल,
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:::बांट देती जो रजनी बाल;
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:::उसे कलियों में आंसू घोल,
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:::चुकाना पड़ता किसको मोल?
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पोछती जब हौले से वात,
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इधर निशि के आंसू अवदात;
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उधर क्यों हंसता दिन का बाल,
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अरुणिमा से रंजित कर गाल?
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:::कली पर अलि का पहला गान,
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:::थिरकता जब बन मृदु मुस्कान,
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:::विफल सपनों के हार पिघल,
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:::ढुलकते क्यों रहते प्रतिपल?
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गुलालों से रवि का पथ लीप,
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जला पश्चिम मे पहला दीप,
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विहँसती संध्या भरी सुहाग,
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दृगों से झरता स्वर्ण पराग;
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:::उसे तम की बढ़ एक झकोर,
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:::उड़ा कर ले जाती किस ओर?
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10:57, 5 नवम्बर 2009 का अवतरण

शून्यता में निद्रा की बन,
उमड़ आते ज्यों स्वप्निल घन;
पूर्णता कलिका की सुकुमार,
छलक मधु में होती साकार;
हुआ त्यों सूनेपन का भान,
प्रथम किसके उर में अम्लान?
और किस शिल्पी ने अनजान,
विश्व प्रतिमा कर दी निर्माण?
काल सीमा के संगम पर,
मोम सी पीड़ा उज्जवल कर।

उसे पहनाई अवगुण्ठन,
हास औ’ रोदन से बुन-बुन!
कनक से दिन मोती सी रात,
सुनहली सांझ गुलाबी प्रात;
मिटाता रंगता बारम्बार,
कौन जग का यह चित्राधार?
शून्य नभ में तम का चुम्बन,
जला देता असंख्य उडुगण;
बुझा क्यों उनको जाती मूक,
भोर ही उजियाले की फूंक?
रजतप्याले में निद्रा ढाल,
बांट देती जो रजनी बाल;
उसे कलियों में आंसू घोल,
चुकाना पड़ता किसको मोल?
पोछती जब हौले से वात,
इधर निशि के आंसू अवदात;
उधर क्यों हंसता दिन का बाल,
अरुणिमा से रंजित कर गाल?
कली पर अलि का पहला गान,
थिरकता जब बन मृदु मुस्कान,
विफल सपनों के हार पिघल,
ढुलकते क्यों रहते प्रतिपल?
गुलालों से रवि का पथ लीप,
जला पश्चिम मे पहला दीप,
विहँसती संध्या भरी सुहाग,
दृगों से झरता स्वर्ण पराग;
उसे तम की बढ़ एक झकोर,
उड़ा कर ले जाती किस ओर?