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"इच्छा थी / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर
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इच्छा तो बहुत थी कि एक घर होता | इच्छा तो बहुत थी कि एक घर होता | ||
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मेंहदी के अहाते वाला | मेंहदी के अहाते वाला | ||
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कुछ बाड़ी-झाड़ी | कुछ बाड़ी-झाड़ी | ||
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कुछ फल-फूल | कुछ फल-फूल | ||
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और द्वार पर एक गाय | और द्वार पर एक गाय | ||
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और बाहर बरामदा में बैंत की कुर्सी | और बाहर बरामदा में बैंत की कुर्सी | ||
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बारिश होती तेल की कड़कड़ धुआं उठता | बारिश होती तेल की कड़कड़ धुआं उठता | ||
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लोग-बाग आते – बहन कभी भाई साथी संगी | लोग-बाग आते – बहन कभी भाई साथी संगी | ||
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कुछ फैलावा रहता थोड़ी खुशफैली | कुछ फैलावा रहता थोड़ी खुशफैली | ||
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पर लगा कुछ ज्यादा चाह लिया | पर लगा कुछ ज्यादा चाह लिया | ||
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स्वप्न भी यथार्थ के दास हैं भूल गया | स्वप्न भी यथार्थ के दास हैं भूल गया | ||
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खैर! जैसे भी हो जीवन कट जाएगा | खैर! जैसे भी हो जीवन कट जाएगा | ||
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न अपना घर होगा न जमीन | न अपना घर होगा न जमीन | ||
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फिर भी आसमान तो होगा कुछ-न-कुछ | फिर भी आसमान तो होगा कुछ-न-कुछ | ||
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फिर भी नदी होगी कभी भरी कभी सूखी | फिर भी नदी होगी कभी भरी कभी सूखी | ||
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रास्ते होंगे शहर होगा और एक पुकार | रास्ते होंगे शहर होगा और एक पुकार | ||
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और यह भी कि कोई इच्छा थी कभी | और यह भी कि कोई इच्छा थी कभी | ||
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तपती धरती पर तलवे का छाला । | तपती धरती पर तलवे का छाला । | ||
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12:11, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
इच्छा तो बहुत थी कि एक घर होता
मेंहदी के अहाते वाला
कुछ बाड़ी-झाड़ी
कुछ फल-फूल
और द्वार पर एक गाय
और बाहर बरामदा में बैंत की कुर्सी
बारिश होती तेल की कड़कड़ धुआं उठता
लोग-बाग आते – बहन कभी भाई साथी संगी
कुछ फैलावा रहता थोड़ी खुशफैली
पर लगा कुछ ज्यादा चाह लिया
स्वप्न भी यथार्थ के दास हैं भूल गया
खैर! जैसे भी हो जीवन कट जाएगा
न अपना घर होगा न जमीन
फिर भी आसमान तो होगा कुछ-न-कुछ
फिर भी नदी होगी कभी भरी कभी सूखी
रास्ते होंगे शहर होगा और एक पुकार
और यह भी कि कोई इच्छा थी कभी
तपती धरती पर तलवे का छाला ।