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"रसोई / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर
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एक दिन बैठे-बैठे उसने | एक दिन बैठे-बैठे उसने | ||
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अजीब बात सोची | अजीब बात सोची | ||
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सारा दिन | सारा दिन | ||
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खाने में जाता है | खाने में जाता है | ||
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खाने की खोज में | खाने की खोज में | ||
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खाना पकाने में | खाना पकाने में | ||
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खाना खाने खिलाने में | खाना खाने खिलाने में | ||
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फिर हाथ अँचा फिर उसी दाने की टोह में | फिर हाथ अँचा फिर उसी दाने की टोह में | ||
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सारा दिन सालन अनाज फल मूल | सारा दिन सालन अनाज फल मूल | ||
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उलटते पलटते काटते कतरते रिंधाते | उलटते पलटते काटते कतरते रिंधाते | ||
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यों बिता देते हैं जैसे | यों बिता देते हैं जैसे | ||
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इस धरती ने बिताए करोड़ों बरस | इस धरती ने बिताए करोड़ों बरस | ||
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दाना जुटाते दाना बाँटते | दाना जुटाते दाना बाँटते | ||
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हर जगह हर जीव के मुँह में जीरा डालते | हर जगह हर जीव के मुँह में जीरा डालते | ||
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इस तरह की यह पूरी धरती | इस तरह की यह पूरी धरती | ||
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एक रसोई ही तो है | एक रसोई ही तो है | ||
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एक लंगर | एक लंगर | ||
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वाहे गुरू का! | वाहे गुरू का! | ||
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12:41, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
एक दिन बैठे-बैठे उसने
अजीब बात सोची
सारा दिन
खाने में जाता है
खाने की खोज में
खाना पकाने में
खाना खाने खिलाने में
फिर हाथ अँचा फिर उसी दाने की टोह में
सारा दिन सालन अनाज फल मूल
उलटते पलटते काटते कतरते रिंधाते
यों बिता देते हैं जैसे
इस धरती ने बिताए करोड़ों बरस
दाना जुटाते दाना बाँटते
हर जगह हर जीव के मुँह में जीरा डालते
इस तरह की यह पूरी धरती
एक रसोई ही तो है
एक लंगर
वाहे गुरू का!