भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"करमा का गीत / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह = अपनी केवल धार / अरुण कमल
 
|संग्रह = अपनी केवल धार / अरुण कमल
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita}}
 
+
<poem>
 
चाँदनी में हिलती है परछाईं
 
चाँदनी में हिलती है परछाईं
 
 
कन्धों से कन्धों पर बँधते हैं हाथ
 
कन्धों से कन्धों पर बँधते हैं हाथ
 
 
बँधती है पँखुड़ी से पँखुड़ी
 
बँधती है पँखुड़ी से पँखुड़ी
 
 
जल की धार-सा फूटता है
 
जल की धार-सा फूटता है
 
 
एक साथ कण्ठों से राग
 
एक साथ कण्ठों से राग
 
  
 
चौहट पारती हैं टोले की लड़कियाँ
 
चौहट पारती हैं टोले की लड़कियाँ
 
 
उठते हैं स्वर
 
उठते हैं स्वर
 
 
छितराती है धरती पर
 
छितराती है धरती पर
 
 
राई-सी पाँवों की थाप
 
राई-सी पाँवों की थाप
 
  
 
आज इस भादो एकादशी को
 
आज इस भादो एकादशी को
 
 
चाँदनी रात में
 
चाँदनी रात में
 
 
लगा जाती है बहन मेरी
 
लगा जाती है बहन मेरी
 
 
सोच भरे ललाट पर रोली का टीका ।
 
सोच भरे ललाट पर रोली का टीका ।
 +
</poem>

13:09, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

चाँदनी में हिलती है परछाईं
कन्धों से कन्धों पर बँधते हैं हाथ
बँधती है पँखुड़ी से पँखुड़ी
जल की धार-सा फूटता है
एक साथ कण्ठों से राग

चौहट पारती हैं टोले की लड़कियाँ
उठते हैं स्वर
छितराती है धरती पर
राई-सी पाँवों की थाप

आज इस भादो एकादशी को
चाँदनी रात में
लगा जाती है बहन मेरी
सोच भरे ललाट पर रोली का टीका ।