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कौन बचा है जिसके आगे
 
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इन हाथों को नहीं पसारा
 
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यह अनाज जो बदल रक्त में
 
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टहल रहा है तन के कोने-कोने
 
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यह कमीज़ जो ढाल बनी है
 
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बारिश सरदी लू में
 
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सब उधार का, माँगा चाहा
 
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नमक-तेल, हींग-हल्दी तक
 
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सब कर्जे का
 
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यह शरीर भी उनका बंधक
 
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अपना क्या है इस जीवन में
 
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सब तो लिया उधार
 
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सारा लोहा उन लोगों का
 
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अपनी केवल धार ।
 
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13:16, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

कौन बचा है जिसके आगे
इन हाथों को नहीं पसारा

यह अनाज जो बदल रक्त में
टहल रहा है तन के कोने-कोने
यह कमीज़ जो ढाल बनी है
बारिश सरदी लू में
सब उधार का, माँगा चाहा
नमक-तेल, हींग-हल्दी तक
सब कर्जे का
यह शरीर भी उनका बंधक

अपना क्या है इस जीवन में
सब तो लिया उधार
सारा लोहा उन लोगों का
अपनी केवल धार ।