भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अनुभव / अरुण कमल

22 bytes added, 08:02, 5 नवम्बर 2009
|संग्रह=पुतली में संसार / अरुण कमल
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
और तुम इतना आहिस्ते मुझे बांधती हो
 
जैसे तुम कोई इस्तरी हो और मैं कोई भीगी सलवटों भरी कमीज़
 
तुम आहिस्त-आहिस्ते मुझे दबाती सहला रही हो
 
और भाप उठ रही है और सलवटें सुलट-खुल रही हैं
 
इतने मरोड़ों की झुर्रियाँ-
 
तुम मुझ में कितनी पुकारें उठा रही हो
 
कितनी बेशियाँ डाल रही हो मेरे जल में
 
मैं जल चुका काग़ज़ जिस पर दौड़ती जा रही आख़िरी लाल चिंगारी
 
मैं तुम्हारे जाल को भर रहा हूँ मैं पानी ।
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits