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"रात की गाथा / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर

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मानो वहाँ होगी एक सीढ़ी और
 
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पर जो न थी
 
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ऎसे ही हाथ पीठ पर पड़ते लगा उसे
 
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और ऎसे ही सुबह हुई
 
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हाथ पीठ पर रक्खे-रक्खे ।
 
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13:33, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

जैसे उतरने में एक पाँव पड़ा हो ऎसे
मानो वहाँ होगी एक सीढ़ी और
पर जो न थी
ऎसे ही हाथ पीठ पर पड़ते लगा उसे

और ऎसे ही सुबह हुई
हाथ पीठ पर रक्खे-रक्खे ।