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"नींद / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर
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तुम्हारा शरीर | तुम्हारा शरीर | ||
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मेरी बाँह पर माथा तुम्हारा | मेरी बाँह पर माथा तुम्हारा | ||
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डूबता चला जाता है | डूबता चला जाता है | ||
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जल में | जल में | ||
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विश्वास है। | विश्वास है। | ||
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13:43, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
धीरे-धीरे भारी हो रहा है
तुम्हारा शरीर
मेरी बाँह पर माथा तुम्हारा
ढल रहा है
नींद का शरीर
शीरे की तरह गाढ़ा
शहद की तरह भारी
डूबता चला जाता है
जल में
तल तक
नींद मनुष्य पर मनुष्य का
विश्वास है।