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"तुम चुप क्यों हो / अरुण कमल" के अवतरणों में अंतर

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क्या है गुप्त
 
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क्या है व्यक्तिगत
 
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जब गर्भ में बन्द बच्चा भी
 
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इतना खुला है
 
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::इतना प्रत्यक्ष?
 
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कोई अपनी पत्नी को पीट रहा है बेतहाशा
 
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कहता है-- मेरी औरत है
 
कहता है-- मेरी औरत है
 
 
कोई अपने नौकर की नन्हीं पीठ जूते से
 
कोई अपने नौकर की नन्हीं पीठ जूते से
 
 
हुमच रहा है
 
हुमच रहा है
 
 
कहता है-- मेरा नौकर है
 
कहता है-- मेरा नौकर है
 
 
और कोई तानाशाह हज़ारों लोगों को
 
और कोई तानाशाह हज़ारों लोगों को
 
 
गोलियों से भून रहा है,
 
गोलियों से भून रहा है,
 
 
मुस्कराता हुआ कहता है-- मेरी जनता है!
 
मुस्कराता हुआ कहता है-- मेरी जनता है!
 
  
 
कैसा समय कि छुट्टा साँड़
 
कैसा समय कि छुट्टा साँड़
 
 
गौवों की नांद में सींग मार रहा है
 
गौवों की नांद में सींग मार रहा है
 
 
और कोई बोल नहीं सकता
 
और कोई बोल नहीं सकता
 
 
कैसा समय के ख़ून के छीटों से भरा सफ़ेद घोड़ा
 
कैसा समय के ख़ून के छीटों से भरा सफ़ेद घोड़ा
 
 
गाँवों को रौंदता जा रहा है
 
गाँवों को रौंदता जा रहा है
 
 
और कोई रोक नहीं सकता
 
और कोई रोक नहीं सकता
 
  
 
चुप क्यों है सारा मौहल्ला
 
चुप क्यों है सारा मौहल्ला
 
 
चुप क्यों है सारी दुनिया
 
चुप क्यों है सारी दुनिया
 
 
तुम चुप्प क्यों हो?
 
तुम चुप्प क्यों हो?
 
  
 
जहाँ कहीं दुख में है आदमी
 
जहाँ कहीं दुख में है आदमी
 
 
जहाँ कहीं मुक्ति के लिए लड़ता है आदमी
 
जहाँ कहीं मुक्ति के लिए लड़ता है आदमी
 
 
वहाँ कुछ भी नहीं है निजी
 
वहाँ कुछ भी नहीं है निजी
 
 
कुछ भी नहीं है गुप्त
 
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फिर भी तुम चुप क्यों हो?
 
फिर भी तुम चुप क्यों हो?
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14:36, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

क्या है गुप्त
क्या है व्यक्तिगत
जब गर्भ में बन्द बच्चा भी
इतना खुला है
इतना प्रत्यक्ष?

कोई अपनी पत्नी को पीट रहा है बेतहाशा
कहता है-- मेरी औरत है
कोई अपने नौकर की नन्हीं पीठ जूते से
हुमच रहा है
कहता है-- मेरा नौकर है
और कोई तानाशाह हज़ारों लोगों को
गोलियों से भून रहा है,
मुस्कराता हुआ कहता है-- मेरी जनता है!

कैसा समय कि छुट्टा साँड़
गौवों की नांद में सींग मार रहा है
और कोई बोल नहीं सकता
कैसा समय के ख़ून के छीटों से भरा सफ़ेद घोड़ा
गाँवों को रौंदता जा रहा है
और कोई रोक नहीं सकता

चुप क्यों है सारा मौहल्ला
चुप क्यों है सारी दुनिया
तुम चुप्प क्यों हो?

जहाँ कहीं दुख में है आदमी
जहाँ कहीं मुक्ति के लिए लड़ता है आदमी
वहाँ कुछ भी नहीं है निजी
कुछ भी नहीं है गुप्त

फिर भी तुम चुप क्यों हो?