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छलकते खुशबुओं से नेत्र थे वो क्या लबालब
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तूने तो इस मरूथल में बरसात कर दी
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हथेली पर टिकाए ठुड्डियां कुछ सोचता सा
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लीले डालती हैं इन निगाहे की भंवर तो
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किस अनोखे अनमने से दर्द की यह बात कर दी
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आज...
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22:04, 5 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

आज तूने स्वप्न की शुरूआत कर दी
रात ही थी रात तूने प्रात कर दी
निपट खाली था यह अपना हृदय भी
तूने तो बस चंपई सौगात कर दी
आज...
स्वप्न था या के सचमुच था वो तू ही
बेले गेंदा चमेली चंपा सोनजूही
छलकते खुशबुओं से नेत्र थे वो क्या लबालब
तूने तो इस मरूथल में बरसात कर दी
आज...
तस्वीर में बैठा है तू तो अब भी सम्मुख
हथेली पर टिकाए ठुड्डियां कुछ सोचता सा
लीले डालती हैं इन निगाहे की भंवर तो
किस अनोखे अनमने से दर्द की यह बात कर दी
आज...