भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"और तीन दिल चाक हैं / अरुणा राय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=अरुणा राय | |रचनाकार=अरुणा राय | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <poem> | ||
+ | चन्दन की दो डालियाँ | ||
+ | जब टकराईं | ||
+ | तो पैदा हुई अग्नि | ||
+ | और लगी फैलने | ||
+ | चहुँओर | ||
− | + | ख़ुशबू तो | |
− | + | एक ही थी | |
− | + | दोंनों की | |
− | + | सो उसने चाहा | |
− | + | कि रोके इस आग को | |
+ | पर ख़ुद को | ||
+ | खोकर रही | ||
+ | उधर आग थी | ||
+ | कि खाक होकर रही | ||
− | + | अब | |
− | + | न चंदन है | |
− | + | ना ख़ुशबू है | |
− | + | चतुर्दिक | |
− | + | उड़ती हुई राख है | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | अब | + | |
− | न चंदन है | + | |
− | ना ख़ुशबू है | + | |
− | चतुर्दिक | + | |
− | उड़ती हुई राख है | + | |
और तीन दिल चाक हैं... | और तीन दिल चाक हैं... | ||
+ | </poem> |
22:16, 5 नवम्बर 2009 का अवतरण
चन्दन की दो डालियाँ
जब टकराईं
तो पैदा हुई अग्नि
और लगी फैलने
चहुँओर
ख़ुशबू तो
एक ही थी
दोंनों की
सो उसने चाहा
कि रोके इस आग को
पर ख़ुद को
खोकर रही
उधर आग थी
कि खाक होकर रही
अब
न चंदन है
ना ख़ुशबू है
चतुर्दिक
उड़ती हुई राख है
और तीन दिल चाक हैं...