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"और तीन दिल चाक हैं / अरुणा राय" के अवतरणों में अंतर

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चन्दन की दो डालियाँ
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सो उसने चाहा
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और तीन दिल चाक हैं...
 
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22:16, 5 नवम्बर 2009 का अवतरण

चन्दन की दो डालियाँ
जब टकराईं
तो पैदा हुई अग्नि
और लगी फैलने
चहुँओर

ख़ुशबू तो
एक ही थी
दोंनों की
सो उसने चाहा
कि रोके इस आग को
पर ख़ुद को
खोकर रही
उधर आग थी
कि खाक होकर रही

अब
न चंदन है
ना ख़ुशबू है
चतुर्दिक
उड़ती हुई राख है
और तीन दिल चाक हैं...