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22:48, 5 नवम्बर 2009 का अवतरण

रचनाकार : नरेन्द्र मोहन


मैं रंगों से हो कर

रंगों में गया हूँ

रेखओं से निकल कर

रेखाओं में समाया हूँ


यह संयोजन नहीं

सन्नाटा है

नहीं, सन्नाटे का रंग-दर्शन है

जहाँ मैं हूँ

मैं नहीं हूँ


कहाँ गुम हो गया है मेरा शब्द

क्या शब्द से बाहर है

यह सन्नाटा ?