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"कैसा आततायी है रे तू / अरुणा राय" के अवतरणों में अंतर

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दुश्वार है ...  
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22:49, 5 नवम्बर 2009 का अवतरण

मेरी
सारी दिशाओं को
अपने मृदु हास्य में बांध
कहां गुम हो गया है खुद

कि
कैसा आततायी है रे तू

तुझसे अच्छा तो
सितारा है वह
दूर है
पर हिलाए जा रहा
अपनी रोशन हथेली

जो नहीं है रे तू
तो क्यों यह तेरी
अनुपस्थिति
ऐसी बेसंभाल है

तू तो कहता है
कि मेरा प्यार है तू
तो फिर यह दर्द कैसा
दुश्वार है ...