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"उपसंहार / शैलेन्द्र चौहान" के अवतरणों में अंतर

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टल गया है निर्णय  
 
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कहीं जाने का  
 
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और जाकर भी  
 
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होता क्या  
 
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कॉफी-हाउस में बैठ
 
कॉफी-हाउस में बैठ
 
 
कुछ अखबारी बातें  
 
कुछ अखबारी बातें  
 
 
कॉफी की चुस्कियाँ
 
कॉफी की चुस्कियाँ
 
 
और
 
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सिगरेट के धुएं के साथ  
 
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समय काटने का शग़ल  
 
समय काटने का शग़ल  
 
 
  
 
यह समय भी  
 
यह समय भी  
 
 
कुछ है अजीब  
 
कुछ है अजीब  
 
 
काटा नहीं जाता  
 
काटा नहीं जाता  
 
 
कट जाता है  
 
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अपनी तमाम  
 
अपनी तमाम  
 
 
बुराइयों, अच्छाइयों  
 
बुराइयों, अच्छाइयों  
 
 
के साथ  
 
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कुछ ही देर पहले  
 
कुछ ही देर पहले  
 
 
बरसी है एक बदली  
 
बरसी है एक बदली  
 
 
अभी ही बंद हुए हैं  
 
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मर्म से भरे  
 
मर्म से भरे  
 
 
टेपित गीत  
 
टेपित गीत  
 
 
सूर के पद  
 
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मीरा के भजन  
 
मीरा के भजन  
 
 
   
 
   
 
 
और पति-पत्नी के बीच  
 
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चलता अनवरत
 
चलता अनवरत
 
 
एक व्यर्थ संवाद  
 
एक व्यर्थ संवाद  
 
 
  
 
सोच ही नहीं सकता पति  
 
सोच ही नहीं सकता पति  
 
 
जिस ढंग से सोच सकती है पत्नी  
 
जिस ढंग से सोच सकती है पत्नी  
 
 
इतने दिनों में  
 
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क्या से क्या हो गया  
 
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ग्रीष्म की तपती लू से  
 
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बचा लिया  
 
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बरखा की  
 
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शीतल फ़ुहारों ने  
शीतल फकुहारों ने  
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नहीं बचा सका कोई  
 
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पृथ्वी के गर्भ में पलते  
 
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ज्वालामुखी से  
 
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अपराध कैसा  
 
अपराध कैसा  
 
 
किसने किया  
 
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कौन करेगा प्रायश्चित  
 
कौन करेगा प्रायश्चित  
 
 
लेर्मोंन्तेव का नायक  
 
लेर्मोंन्तेव का नायक  
 
 
डोरियनग्रे की तस्वीर  
 
डोरियनग्रे की तस्वीर  
 
 
  
 
मैं नहीं
 
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कोई और ही है
 
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इन प्रसंगों के पीछे  
 
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विवश है मानव मन  
 
विवश है मानव मन  
 
 
अपराधी वो नहीं  
 
अपराधी वो नहीं  
 
 
जो ताक रहे हैं  
 
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निर्जन द्वार  
 
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अपराधी है भीनी-भीनी महक  
 
अपराधी है भीनी-भीनी महक  
 
 
मोहक पुष्पपराग
 
मोहक पुष्पपराग
 
 
  
 
झीने बादलों के  
 
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आवरण से  
 
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भुवन भास्कर की श्लथ किरणें  
 
भुवन भास्कर की श्लथ किरणें  
 
 
हो चुकी हैं ओझल  
 
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शीतल आर्द्र पवन  
 
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पुनः हो उठी है चंचल  
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बरसेगी फिर  
 
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बदली एक  
 
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ये क्षण  
 
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निर्णायक भी नहीं हैं  
 
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इतिहास की वर्तुल गति  
 
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बदला हुआ न्यूक्लियस  
 
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बाहरी आर्बिट में  
 
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घूमता इलेक्ट्रॉन
 
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बाह्य उर्जास्त्रोत से  
 
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किया जाना है विलग  
 
किया जाना है विलग  
 
 
  
 
बहुत शुभ दिखते हैं  
 
बहुत शुभ दिखते हैं  
 
 
विलग होने का  
 
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आभास देने वाले दिवस
 
आभास देने वाले दिवस
 
 
  
 
दिख जाते हैं  
 
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जल से भरे पात्र प्रात:
 
जल से भरे पात्र प्रात:
 
 
कल्याणकारी नीलकंठ
 
कल्याणकारी नीलकंठ
 
 
उड़-उड़ बैठते हैं  
 
उड़-उड़ बैठते हैं  
 
 
टेलीफोन के तारों पर  
 
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अपना पहला आर्बिट  
 
अपना पहला आर्बिट  
 
 
छोड़ देता है इलेक्ट्रॉन
 
छोड़ देता है इलेक्ट्रॉन
 
 
  
 
परमाणु विखंडन की  
 
परमाणु विखंडन की  
 
 
अनचाही प्रतीक्षा  
 
अनचाही प्रतीक्षा  
 
 
रेडियोधर्मिता रोकने का प्रयास  
 
रेडियोधर्मिता रोकने का प्रयास  
 
 
विशद ऊर्जा का स्वप्न  
 
विशद ऊर्जा का स्वप्न  
 
 
निरर्थक !
 
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वर्तुल गति का  
 
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कलुषित सत्य  
 
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साक्षी है इतिहास  
 
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टीसता है व्यग्र मन  
 
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सज़ा तो मिलेगी  
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आतताइयों को  
 
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यदि चला यह चक्र  
 
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युगों तक  
 
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बिखरने लगे हैं मेघ  
 
बिखरने लगे हैं मेघ  
 
 
सूर्य रश्मियाँ हो गई हैं
 
सूर्य रश्मियाँ हो गई हैं
 
 
अनावरत  
 
अनावरत  
 
 
तल्ख नहीं हैं ग्रीष्म की भाँति  
 
तल्ख नहीं हैं ग्रीष्म की भाँति  
 
 
  
 
यही उपसंहार है  
 
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यही भविष्य का इन्गित  
 
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छुटता है मुटि्ठयों से  
 
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कैद किया हुआ
 
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अनंत आसमान  
 
अनंत आसमान  
 
 
छुटते हैं कनक कण  
 
छुटते हैं कनक कण  
 
 
बिखर जाता है  
 
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पुष्प पराग  
 
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फटने लगती हैं  
 
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परमाणु भटि्ठयाँ
 
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फैल जाती है दूर तक  
 
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धरा पर रेडियोधर्मिता
 
धरा पर रेडियोधर्मिता
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00:03, 6 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

टल गया है निर्णय
कहीं जाने का
और जाकर भी
होता क्या

कॉफी-हाउस में बैठ
कुछ अखबारी बातें
कॉफी की चुस्कियाँ
और
सिगरेट के धुएं के साथ
समय काटने का शग़ल

यह समय भी
कुछ है अजीब
काटा नहीं जाता
कट जाता है
अपनी तमाम
बुराइयों, अच्छाइयों
के साथ

कुछ ही देर पहले
बरसी है एक बदली
अभी ही बंद हुए हैं
मर्म से भरे
टेपित गीत
सूर के पद
मीरा के भजन
 
और पति-पत्नी के बीच
चलता अनवरत
एक व्यर्थ संवाद

सोच ही नहीं सकता पति
जिस ढंग से सोच सकती है पत्नी
इतने दिनों में
क्या से क्या हो गया

ग्रीष्म की तपती लू से
बचा लिया
बरखा की
शीतल फ़ुहारों ने

नहीं बचा सका कोई
पृथ्वी के गर्भ में पलते
ज्वालामुखी से

अपराध कैसा
किसने किया
कौन करेगा प्रायश्चित
लेर्मोंन्तेव का नायक
डोरियनग्रे की तस्वीर

मैं नहीं
कोई और ही है
इन प्रसंगों के पीछे
विवश है मानव मन
अपराधी वो नहीं
जो ताक रहे हैं
निर्जन द्वार
अपराधी है भीनी-भीनी महक
मोहक पुष्पपराग

झीने बादलों के
आवरण से
भुवन भास्कर की श्लथ किरणें
हो चुकी हैं ओझल

शीतल आर्द्र पवन
पुनः हो उठी है चंचल
बरसेगी फिर
बदली एक

ये क्षण
निर्णायक भी नहीं हैं
इतिहास की वर्तुल गति
बदला हुआ न्यूक्लियस

बाहरी आर्बिट में
घूमता इलेक्ट्रॉन
बाह्य उर्जास्त्रोत से
किया जाना है विलग

बहुत शुभ दिखते हैं
विलग होने का
आभास देने वाले दिवस

दिख जाते हैं
जल से भरे पात्र प्रात:
कल्याणकारी नीलकंठ
उड़-उड़ बैठते हैं
टेलीफोन के तारों पर

अपना पहला आर्बिट
छोड़ देता है इलेक्ट्रॉन

परमाणु विखंडन की
अनचाही प्रतीक्षा
रेडियोधर्मिता रोकने का प्रयास
विशद ऊर्जा का स्वप्न
निरर्थक !

वर्तुल गति का
कलुषित सत्य
साक्षी है इतिहास
टीसता है व्यग्र मन
सज़ा तो मिलेगी
आतताइयों को
यदि चला यह चक्र
युगों तक

बिखरने लगे हैं मेघ
सूर्य रश्मियाँ हो गई हैं
अनावरत
तल्ख नहीं हैं ग्रीष्म की भाँति

यही उपसंहार है
यही भविष्य का इन्गित
छुटता है मुटि्ठयों से
कैद किया हुआ
अनंत आसमान
छुटते हैं कनक कण
बिखर जाता है
पुष्प पराग
 
फटने लगती हैं
परमाणु भटि्ठयाँ
फैल जाती है दूर तक
धरा पर रेडियोधर्मिता