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"चाँद को रुख़्सत कर दो / अली सरदार जाफ़री" के अवतरणों में अंतर
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00:04, 6 नवम्बर 2009 का अवतरण
मेरे दरवाज़े से अब चाँद को रुख़्सत कर दो
साथ आया है तुम्हारे जो तुम्हारे घर से
अपने माथे से हटा दो यह चमकता हुआ ताज
फेंक दो जिस्म से किरनों का सुनहरी ज़ेवर
तुम ही तन्हा मिरे ग़मख़ाने में आ सकती हो
एक मुद्दत से तुम्हारे ही लिए रक्खा है
मेरे जलते हुए सीने का दहकता हुआ चाँद
दिले-ख़ूँ-गश्ता<ref>ख़ून में लत-पत दिल</ref> का हँसता हुआ ख़ुश-रंग गुलाब
शब्दार्थ
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